तमिल और संस्कृत का संगम आवश्यक - प्रो. श्रीप्रकाश
तमिल और संस्कृत का संगम आवश्यक - प्रो. श्रीप्रकाश
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मोतिहारी।
महात्मा गांँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार में भारतीय भाषा उत्सव के अवसर पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के संस्कृत विभाग के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय रहे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता गांँधी भवन परिसर के निदेशक एवं विश्वविद्यालय के मुख्य कुलानुशासक प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने किया।
कार्यक्रम का आरम्भ संस्कृत विभाग के शोधच्छात्र गोपाल कृष्ण मिश्र के द्वारा लौकिक मंगलाचरण से हुआ। तत्पश्चात् कार्यक्रम के संयोजक डॉ. श्याम कुमार झा ने भारतीय भाषा उत्सव के विषय में प्रकाश डालते हुए बताया कि विभिन्न भाषाओं में एक दूसरे से सामंजस्य रखते हुए बहुत से पर्यायवाची शब्द हैं।
इन शब्दों के अध्ययन से भाषाओं में सामीप्य ज्ञात हो सकता है। आपने तमिल भाषा के प्रतिनिधि कवि सुब्रमण्यम भारती के जीवन पर भी प्रकाश डाला। सामाजिक विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सुनील महावर ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृति का मूल भाषाएंँ ही हैं और इनमें भारतीय भाषाओं को एक साथ जोड़ने के तत्त्व निहित हैं।
कार्यक्रम में अतिथि वक्तव्य हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती की तुलना मैथिली शरण गुप्त से की जा सकती है और उनका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं भाषाविद् प्रोफेसर श्रीप्रकाश पाण्डेय ने अपने मुख्य वक्तव्य में कहा कि जिस प्रकार हमें अपनी भाषा प्रिय लगती है उसी प्रकार तमिल क्षेत्र वालों को तमिल भाषा प्रिय लगती है।
तमिल भाषा पर संस्कृत का अत्यन्त प्रभाव दिखाई पड़ता है। प्रो. पाण्डेय ने उदाहरण देते हुए बताया कि वाल्मीकि रामायण का प्रभाव तमिल भाषा में रचित कम्ब रामायण पर दिखाई पड़ता है।संस्कृत भाषा किसी भी भाषा के विरोध में नहीं है, अपितु पूरक है। किसी भी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, राजनैतिक, चारित्रिक और सांस्कृतिक उत्कर्ष में संस्कृत भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि अपनी मातृभाषा के साथ ही दूसरों की मातृभाषा का भी आदर करना चाहिए, जिससे आपस में सामंजस्य बना रहे। प्रो. सिंह ने आगे कहा कि समता के लिए भाषिक एवं वैचारिक समानता की भी आवश्यकता होती है। अतः भाषिक प्रतिरोध न करते हुये सभी भाषाओं का आदर करते हुये उन्हें सीखने के प्रति भी प्रवृत्त होना चाहिए।
अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. बबलू पाल ने किया। आपने समस्त अभ्यागत अतिथियों का धन्यवाद करते हुये धर्मपूर्वक आचरण की बात की, जिसका सभी भारतीय भाषाओं में स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
कार्यक्रम का सफल संचालन संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. विश्वजीत बर्मन् ने किया।
उक्त कार्यक्रम में डॉक्टर सरिता तिवारी, डॉ नरेंद्र आर्य, डॉ मुकेश कुमार, डॉ पंकज कुमार,डॉ अनुपम वर्मा, डॉ नरेन्द्र सिंह, डॉ उपमेश तलवार, डॉ युगल किशोर दाधीच सहित विभिन्न विभागों के आचार्यगण तथा शोधच्छात्र उपस्थित रहे।