अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का भाव है झिझियाँ
अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का भाव है झिझियाँ
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मोतिहारी,पू०च०।
भारतीय सांस्कृतिक उत्सव एवं परम्पराओं का वही महत्व है जो महत्व भारतीय संस्कृति के आधारभूत वेद,पुराण,धर्मशास्त्र,रामायण,महाभारत आदि का है। सम्पूर्ण हिन्दू परम्पराएं इन्हीं ग्रंथों के आधार पर बनी है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि ``ग्रामवचनं कूर्यात्ʼʼ अर्थात् गाँव की परंपराओं का अनुपालन करें। इसका कारण यह है कि सभी धार्मिक ग्रंथ दो तरह की शिक्षाएं देते हैं-एक विचारात्मक और दूसरी व्यवहारात्मक। गाँव की माता बहनें जो झिझिया के रूप में परंपराओं का पालन करतीं हैं,
उसका संबंध शास्त्र से साक्षात् दिखाई नहीं पड़ता,परन्तु ये परंपराएं किसी न किसी रूप में किसी न किसी शास्त्र के साथ संबद्ध अवश्य है।उक्त बातें महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने कही।उन्होंने बताया कि जहाँ तक झिझियाँ का संबंध है,इस परंपरा की भी स्थिति लगभग ऐसी ही है। कालिक भेद के कारण उत्सवों का स्वरूप बदल जाया करता है।
वैदिक मंत्रों में दीप एवं प्रकाश को अन्धकार,माया एवं राक्षसी वृत्तियों को खत्म करने का साधन माना गया है,जिसके प्रभाव से पौराणिक काल में नवदुर्गा के प्रसंग में नवरात्र के समय पूजा की परंपरा से संबंधित अनेक प्रकार की देश काल परिस्थिति के अनुसार परंपरा देखने में आती है।दुर्गा सप्तशती के अध्ययन के आधार पर प्राचीन काल में गाँव की स्त्रियाँ नव की संख्या में नवदुर्गा के रूप में वस्त्राभूषण पहन कर हाथ में दुर्गा के खप्पर अथवा ज्योति पात्र को लेकर गाँव की सीमा का चक्कर लगाती थी।
वहीं झिलमिल झिलमिल शब्द कालान्तर में झिझियाँ के रूप में प्रचलित हो गया। झिझियाँ की परंपरा ``तमसो मा ज्योतिर्गमयʼʼ अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देती है।प्राचार्य पाण्डेय ने कहा कि चूंकि वैदिक संस्कार एवं वैदिक साहित्य का प्रभाव सम्पूर्ण भारतवर्ष के क्षेत्रों के साथ बिहार पर भी पड़ा,अतः झिझियाँ की परंपरा आज भी बिहार एवं कुछ अन्य क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
इसका तात्पर्य यह है कि छिद्र युक्त घड़े में रखे हुए दीपक के ज्योति पुंज के माध्यम से महिलाएं दुर्गा का रूप धारण कर राक्षसियों को मानो खोज-खोज कर गाँव की सीमा से बाहर कर देती है। इधर पुरुष वर्ग नवरात्र में शक्ति की उपासना से परिवार,समाज एवं गाँव के लिए अहित करने वाले पदार्थों को नष्ट करता है। यही है ``तमसो मा ज्योतिर्गमयʼʼ का भाव,जो झिझियाँ के रूप में आज भी समाज में प्रचलित है।