नीलकंठ पक्षी शदियों से देखने का धार्मिक महत्व प्रकृति सरंंक्षण का अहम घटक
नीलकंठ पक्षी शदियों से देखने का धार्मिक महत्व प्रकृति सरंंक्षण का अहम घटक
P9bihar news
सत्येन्द्र कुमार शर्मा
प्रधान संपादक।
दशहरा के मौके पर नीलकंठ पक्षी देखने की धार्मिक महत्व शदियों से माना जाता रहा है।हालांकि इसी को लेकर प्रति वर्ष 3 अक्टूबर के दिन विश्व प्रकृति दिवस भी मनाया जाता है।
प्रकृति "प्र" अर्थात् प्रकृष्ठी उत्तम व श्रेष्ठ एवं "कृति" ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात् सृष्टि। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध जो दशहरा के मौके पर नीलकंठ पक्षी देखने के शदियों पुरानी परंपरा से स्पष्ट होता है।
मनुष्य के लिए धरती एक घर का आंगन, आसमान छत, सागर-नदिया पानी के मटके हैं, पेड़-पौधे आहार साधन हैं, सूर्य-चाँद, तारे दीपक हैं। वर्तमान समय में कई प्रजातीयों, जीव-जंतु एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं। विलुप्त हो रहे जीव-जंतु व वनस्पति के रक्षा का संकल्प लेना जहां विश्व प्रकृति दिवस का मूल उद्देश्य को स्थापित करने की दिशा में काम करता है।ठीक उसी प्रकार नीलकंठ का दशहरा के दिन दर्शन भी हमारे प्रकृति सरंंक्षण पर अध्यात्मिक रुप से महत्व को बतलाता हैं।
गौरतलब है कि प्रकृति हमारी सभी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है किन्तु स्वयं अपनी चीजों का उपयोग नहीं करती है। जल, जंगल ,पशु, पक्षी और जमीन से ही मनुष्य का जीवन है। प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है। प्रकृति में चारों ओर पेड़-पौधों की हरियाली और उस पर घर बनाकर रहने चहकने वाले नीलकंठ जैसे पक्षी है।
प्रकृति ने हमें पेड़-पौधे, फल-फूल, पशु-पक्षी आदि दिए हैं। आब आज हमें प्रकृति को बचाने के लिए प्रकृति को प्लास्टिक मुक्त करने का समय आ गया है।हमें विश्व का ध्यान आकर्षित करना होगा। प्रदुषण को कम करना होगा, प्रकृति को हरी भरी खुशहाल रखना होगा। वन्य प्राणियों का संरक्षण-संवर्धन करना होगा, हमें अधिक से अधिक पेड़-पौधों को लगाना होगा। हमें प्रकृति को समझना होगा। अगर प्रकृति ही हमसे रूठ गई तो हमारी सुनने वाला कोई नहीं होगा।
3 अक्टूबर 2010 से विश्व प्रकृति दिवस मनाने की शुरुआत विश्व प्रकृति संगठन द्वारा की गयी थी।जबकि दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन के महत्व की परंपरा शदियों पुरानी बात को जीवित रखने के लिए हमें प्रकृति के सरंंक्षण के आध्यात्मिक महत्व के मद्देनजर पहल करने की जरूरत है।