सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फिल्में बनाने की वजह से मेरी अलग पहचान बनी है : डा. अस्थाना

सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फिल्में बनाने की वजह से मेरी अलग पहचान बनी है : डा. अस्थाना

सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फिल्में बनाने की वजह से मेरी अलग पहचान बनी है : डा. अस्थाना

P9bihar news 

प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
सिनेमा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पुरस्कृत एवं दर्जनों अवार्ड से सम्मानित फ़िल्म लेखक, अभिनेता व  निर्देशक डा. राजेश अस्थाना लीक से अलग हटकर सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फिल्में बनाने की वजह से अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। वर्ष 1985 में पहलीबार फ़िल्म "गोरखनाथ बाबा तोहे खिचड़ी चढ़इबे" से पहलीबार कैमरा फेश करनेवाले डा.अस्थाना ने दो दर्ज़न से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है।

23 टेलीफ़िल्में, 2 सीरियल, 8 डाक्यूमेंट्री एवं 6 फीचर फिल्म के साथ एक वेब सीरीज बनानेवाले डा.अस्थाना ने 150 नाटकों के मंचन के साथ साथ काफ़ी उत्पादों का मॉडलिंग भी किया है। मोतिहारी में भव्य फीचर फिल्म व वेब सीरीज "चम्पारण सत्याग्रह" के सेट पर काफी व्यस्तता के बीच समय निकालकर कुछ बातें की। उन्होंने बताया कि इस फिल्म को बनाना हमारा सपना है। डा. अस्थाना ने बताया कि कला की बारीकियों को सीखने की जगह मंच ही होता है, चाहे वह रंगमंच हो या फ़िल्म का सेट।मेरे व्यक्तित्व में उनके जैसी कोई समानता नहीं है।

मुझे इस बात की चिंता थी कि क्या मैं पंडित राजकुमार शुक्ल की तरह दिख पाऊंगा? लेकिन फिर मेरे टीम ने कहा कि कहा कि नेचुरल परफॉरमेंस जो आप देते हैं वह आपको पूर्ण पंडित राजकुमार शुक्ल बना देगा। जब मैंने उनका यकीन देखा तो ठान लिया कि इस भूमिका के लिए दस कदम आगे बढ़कर काम करूंगा। आज रिजल्ट आपके सामने है। फ़िल्म "बियाह होखे त अईसन" में शादी के पाँचवें दिन दहेज की बलिबेदी पर भेंट चढ़ी बेटी का पिता बनाना भी मेरे लिए काफी चैलेंजिंग था वह भी तब जब तीन माह पूर्व ही अपनी सगी बेटी की शादी बिहार के बजाए एक हज़ार किलोमीटर दूर यूपी के हापुड़ में किया था।

फिर सामुहिक विवाह के दृश्य फिल्माने के दौरान फ़िल्म के दृश्य में जब मैं बेटी की याद में रोने लगा तो एकबारगी 50 हज़ार दर्शकों की भीड़ में एकबारगी सन्नाटा छा गया। बतौर अभिनेता निर्देशक मुझे ये लगता है कि एक अच्छी स्क्रिप्ट किसी भी प्रोजेक्ट को खास बनाता है। एक स्क्रिप्ट आपको बता देती है कि आपको क्या करना है और आपको किरदार के बारे में विजन देता है। इसके बाद एक्टर अपना योगदान उस किरदार को और भी मजबूत बनाने में अपना प्रभाव डालता है।पहले सिनेमा में कंटेंट की कमी रहती थी। यह कमी कुछ सालों पहले तक थी लेकिन अब एेसा नहीं है। चूंकि अब अच्छे कंटेंट पर फिल्में बन रही हैं जिन्हें सराहना भी मिल रही है। वैसे भी हमारा देश कल्चरली काफ़ी रिच है तो कंटेंट की कमी नहीं होना चाहिए।

अब वेब सीरिज के जरिए भी अच्छा कंटेंट सबके सामने आ रहा है।बात करें बॉलीवुड की या फिर रीजनल सिनेमा की तो दोनों अपनी-अपनी जगह अच्छा कर रहे हैं। फर्क सिर्फ प्रमोशन का है कि रीजनल सिनेमा में बॉलीवुड के मुकाबले कम प्रमोशन किया जाता है।बेशक भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता आई है। इसके लिए 90 प्रतिशत कुकुरमुत्ते की तरह उग आए रिकार्डिंग स्टुडियो है। नेट से ट्रैक चुराकर उसपर अश्लील या द्विअर्थी गाने के बोल भरकर यूट्यूब पर लोड कर देते हैं।

यूट्यूब चैनल पर सरकार का नियंत्रण नही रहने से बिना सुर ताल के गा- गा कर यूट्यूबर स्टार बनकर कॉलर टाइट किए रहते हैं सब। बाकी बचे 10 प्रतिशत स्थापित निर्माता- निर्देशक और स्टार कलाकार लोग हैं, जिन्हें अपनी झोली भरने के अलावा दूसरा कोई काम नही है। भले ही भोजपुरिया समाज गर्त में ही क्यों न चली जाए। मेरी फिल्मों में कहीं से भी अश्लीलता नही होती है।

मेरे सपनों की फ़िल्म "चम्पारण सत्याग्रह" में पंडित राजकुमार शुक्ल एवं फ़िल्म बियाह होखे त अईसन पिता का किरदार मुझे अमर बना देगा। मैं अपनी फिल्मों के अलावा बाहर की फिल्में भी करना शुरू कर दिया है जिनमें मास्टर जी, देवता, दहेज के आग, केहू से प्यार हो जाला, ई हमार प्यार मोहब्बत जिंदाबाद, हमार बियाह कब होई, राजू भईया बीएएमएस  आदि प्रमुख है।