होली के अध्यात्मिक शाश्वत महत्व से कोसों दूर आज की होली
सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
होली-होला-होलाक- होलिका दहन का महत्व अध्यात्मिक एवं वैदिक काल से रहा है जिसका हम आज भी अनुकरण करते हैं लेकिन आज उससे पूर्णतः बिमुख होते जा रहे हैं।
बीते साल की समाप्ति नये साल का शुभारंभ के अवसर पर हमारा आदर्श ही हमें विश्व गुरु के श्रेणी में पहुंचाने का श्रेय देने का काम किया है।
अध्यात्मिक सनातन धर्म संस्कृति की महत्वपूर्ण बातों में
सामाजिक सौहार्द एकता, अखंडता, सद्भाव, भाईचारा का परिचायक आदि काल रहा है वर्तमान में उसे पढ़ लिख कर भी अनुपालन से कोसों दूर भाग रहें हैं।
आज हम जैमिनीसूत्र के रचयिता और ग्रंथ से अनभिज्ञ है।उसके होलिकाधिकरण नामक स्वतंत्र प्रकरण होली की प्राचीनता की जानकारी से भी दूर है।
वात्स्यायन का होलाक उत्सव या विष्णुपुराण का त्योहार प्रह्लाद से जुड़ा हुआ है। इस पर्व का संबंध काम दहन से है। जब भगवान शंकर ने अपने क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया तभी से इस त्योहार का प्रचलन है।कामदेव क्रोधाग्नि के भस्म से हम सभी आज दूर होते जा रहे हैं।
गौरतलब वैदिक काल जब आज के नवान्नेष्टि यज्ञ में खेत से अधकच्चे व अधपक्के जौ,गेहूँ,चना आदि अन्न को यज्ञ की अग्नि में हवन करके प्रसाद लेने का विधान समाज में लाया गया और जिस अन्न को होला कहा गया और होलिकोत्सव मनाया जाने लगा।
नव संवत्सर वसंतागमन के उपलक्ष्य में यह एक यज्ञ माना गया।
प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय के अनुसार होली देवताओं का प्रिय पर्व रहा है। भगवान राम अवध मेंं,श्रीकृष्ण ने द्वारिका, व्रज में तो भगवान शंकर के श्मशान के राख से होली खेलने की बात तो होली गीतों में भी सूनने को मिल जाता है।
सूर्य के प्रकाश से अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष तक फैला प्रत्येक रंग विधाता की कल्पना का प्रमाण है।
हरा रंग समृद्धि,विकास तथा पुनः निर्माण का उद्घोष करता है तो पीला या केसरिया कल्पना,ज्ञान व बुद्धि की शक्ति को दर्शाता है। लाल रंग कर्मयोग के उल्लास को झलकाता है। मगर काला रंग तामसिक प्रवृत्ति का प्रतीक है। अतः होली के अवसर पर काले रंग का उपयोग सर्वथा निषेध माना गया है।
अट्टहास, किलकारियों तथा मंत्रोच्चार से पापात्मा राक्षसों का नाश हो जाता है।
इसलिए होलिकादहन के समय सभी उच्चे स्वर में अट्टहास व किलकारियाँ मारकर होलिका के चारो ओर झूम झूमकर आदर्श नृत्य संगीत प्रस्तुत करने की परम्परा आज तक चली आ रही है। लेकिन आज हमारे अधिकांश लोग इस परम्परा को भुलाने का काम कर रहे हैं।आज मांस मदीरा का पान कर होली मनाया जा रहा है।लोग आदर्शों को भुलाने का काम कर रहे हैं जो सर्वथा अनुचित है।
तो दूसरी ओर पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई एवं खेतों के बंजर होने से होलिका दहन सामग्री कम होती जा रही है तो वहीं ग्रामीण सड़कों के पक्कीकरण से सड़कों पर धूल नदारद हो गया है।
हमारे आदर्शों मेंं लगातार गिरावट का परिणाम है कि आज पुलिस को डीजे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने इसका उल्लंघन करने वाले डीजे मालिको/संचालकों पर विधि-सम्मत कानूनी कार्रवाई करने,अश्लील गानों को प्रतिबंधित करने और ऐसा करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए पूर्व से हिदायत दी जा रही है।
पर्वों को सौहाद्रपूर्ण और शांतिपूर्ण माहौल मे संपन्न करने की अपील करना पड़ रहा है।
इस दौरान वाहन चालकों द्वारा धीमी गति से वाहन चलाये जाने अन्यथा उनकी जान भी जा सकती है का अपील किया जाना पड़ रहा है।
इसके अतिरिक्त जिला प्रशासन द्वारा भी दिए गए निर्देशों का अनुपालन करने की गुहार लगाई जा रही है।यह हमारे पौराणिक आदर्श मेंं गिरावट का परिचायक बनता जा रहा है जिसे सुधारने के लिए हमें अमल करने का वक्त आ गया है।अन्यथा हम होली के मूल्यों से कोसों दूर भागते जा रहे हैं।