व्यथा पर हौसले से पिता-पुत्री ने जीती कालाजार से जंग

व्यथा पर हौसले से पिता-पुत्री ने जीती कालाजार से जंग

व्यथा पर हौसले से पिता-पुत्री ने जीती कालाजार से जंग

- 2017 में पिता और बेटी दोनों हुए थे कालाजार से ग्रसित 

- बेटी को 2021 में दुबारा हुआ कालाजार, इलाज से हुआ ठीक

प्रमोद कुमार 

मुजफ्फरपुर।
यह व्यथा एक परिवार की है। जिसका परिवार न सिर्फ कालाजार जैसी बीमारी से ग्रसित हुआ बल्कि इसी से अपनों को खोया भी। यह परिवार ग्राम जरंगी प्रखंड बोचहां के रहने वाले घनश्याम चौधरी का है। जिनके परिवार के पांच सदस्यों को कालाजार हुआ। चाची और अपने छोटे भाई की पत्नी को तो उन्होंने खो दिया पर खुद व पुत्री आकांक्षा को इस भयावह बीमारी के चंगुल से बचा लिया। घनश्याम के लिए यह तभी संभव हो पाया जब उसने रामबाग स्थित सरकारी संस्थान से इलाज की सुविधा ली।

उनकी व्यथा पर पिता और पुत्री का  हौसला  दूसरों के लिए नसीहत बन गयी।घनश्याम चौधरी बताते हैं कि वह और उनकी बेटी आकांक्षा 2017 में कालाजार से ग्रसित हो गए थे। उस समय रामबाग में ही कालाजार जांच का शिविर लगा हुआ था। शिविर में कालाजार टेस्ट का नमूना पॉजिटिव निकला। उन्हें उस समय बुखार और सर्दी खांसी रहती थी।

सदर अस्पताल में पिता -पुत्री का पांच दिन इलाज के बाद हालत में सुधार होता चला गया। घनश्याम कहते हैं पिछले वर्ष की बात है जब मेरी बेटी को दुबारा से त्वचा का कालाजार हुआ। बेटी की बढ़ती उम्रपर इस तरह के दाग देख मैं विचलित हो गया। जब सरकारी अस्पताल में दिखाया तो पता यह भी कालाजार ही है। यह सुन मैं फिर से परेशान हो गया। मैंने थोड़ा हौसला रखा और फिर से बेटी को दिखाना शुरू किया।

आज का वक्त है कि मेरी बेटी के चेहरे से दाग-धब्बा बिल्कुल ही गायब है। इसे देखकर मैं और बेटी दोनों खुश हैं।घनश्याम संतोष के भाव के साथ बोलते हैं कि कालाजार का पक्का इलाज सरकारी अस्पताल में ही संभव है। ऐसा नहीं है कि मैंने शुरुआत में नहीं दिखाया था। प्राइवेट अस्पताल या चिकित्सक आपकी तकलीफ तो कम कर देंगे पर पक्का इलाज सरकारी अस्पतालों में ही संभव है। अब तो मैं किसी को भी सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराने की सलाह देता हूं।