ढाई आखर प्रेम पदयात्रा मोतिहारी शहर में पहुंची

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा मोतिहारी शहर में पहुंची

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा मोतिहारी शहर में पहुंची


नुक्कड़ चौराहों पर गूंजें प्रेम बंधुत्व के जनगीत

P9bihar news 


प्रमोद कुमार 
मोतिहारी।ढाई आखर प्रेम का राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था बापू के पदचिह्न पर पदयात्रा करते हुए आज मोतिहारी शहर पहुंच गया। प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के गीत गाते कलाकारों ने आमजन को जीवन से प्रेम करने और सबके लिए सुन्दर दुनिया बनाने का संदेश दिया।बिहार इप्टा के महासचिव फीरोज अशरफ खां भी आज की पदयात्रा में शामिल हुए

और उन्होंने कहा कि बापू के पदचिह्नों पर प्रेम के ढाई आखर की बात करने हम कलाकार, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता आपके बीच हैं। उन्होंने कहा कि हम समाज के तौर पर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, वैसे- वैसे हममें दूरियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। दूरियाँ बढ़ाई भी जा रही हैं। हम जो एक ताना-बाना में बुने हुए थे, उसे ख़त्म करने की कोशिश हो रही है।

नफ़रत बढ़ाने वाले लोग बढ़ रहे हैं। हमारे टेलीविज़न चैनलों और मोबाइल पर दूरी पैदा करने वाले झूठ, नफ़रती कार्यक्रम, वीडियो और संदेश दिन-रात आ रहे हैं। वे हमें साथ रहना नहीं सिखाते। वे लड़ाना सिखाते हैं. हम यहाँ लड़ने या लड़ाने की बात करने नहीं आए हैं। लखनऊ (उत्तर प्रदेश) से शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार और जेंडर कार्यकर्ता नसीरुद्दीन ने कहा कि हम बापू के पदचिह्नों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं.

बापू के पदचिह्न यानी बापू के बताए रास्तों को खोजने और उन पर चलने की कोशिश कर रहे हैं. बापू के पदचिह्न पर चलने का मतलब, सत्य, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव की राह पर चलना। महात्मा गांधी को याद करते हुए झारखण्ड से पदयात्रा में शामिल हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र ने कहा कि बापू अपने को हिन्दू मानते और खुलकर कहते थे. वे बार-बार कहते थे, ‘मैं अपने आपको केवल हिन्दू ही नहीं, बल्कि ईसाई, मुसलमान, यहूदी, सिख, पारसी, जैन या किसी भी अन्य सम्प्रदाय का अनुयायी बताता हूँ

. इसका मतलब यह है कि मैंने अन्य सभी धर्मों और सम्प्रदायों की अच्छाइयों को ग्रहण कर लिया है. इस प्रकार मैं हर प्रकार के झगड़े से बचता हूँ और धर्म की कल्पना का विस्तार करता हूँ.’ यह बात उन्होंने 10 जनवरी 1947 को कही थी.  यानी एक धर्म मानने का मतलब यह नहीं होता कि हम दूसरे धर्मों के ख़िलाफ़ हो जाएँ. हमें साथ- साथ रहना है तो साथ-साथ प्रेम से जीना ही होगा।

कार्यक्रम संयोजक अमर ने कहा कि हम बापू के ऐसे ही संदेश लेकर आए हैं. बापू ने इसी कोशिश में अपनी जान दे दी. उन लोगों ने उनकी जान ले ली जो हमें एकसाथ मिलकर रहते हुए देखना नहीं चाहते थे. बापू के पदचिह्न पर चलने का मतलब है, दूसरों के लिए जान देना. किसी की जान लेना नहीं. आइए हम सब अपनी ज़िंदगी में प्रेम के ढाई आखर को याद रखें. अहिंसा, नम्रता और सत्य को याद रखें. क्योंकि बापू मानना था,

‘सत्य ही परमेश्वर है।ढाई आखर प्रेम पदयात्रा का आज सातवां दिन था। सिसवा पूर्वी पंचायत में रात्रि विश्राम के बाद सांस्कृतिक जत्था सुबह प्रभात फेरी से प्रारंभ हुआ। अहले सुबह कलाकारों ने ग्रामीणों के साथ संवाद किया।सिसवा पूर्वी में विशेष सांस्कृतिक सुबह करते हुए पदयात्रियों ने गीत गाए। नाटक किए और कबीर के पदों पर आधारित भाव नृत्य की प्रस्तुति की इसके बात जत्था सुजहा गांव पहुंचा और महिलाओं के बीच खुद को बदलने और नया जमाना बनाने की बात की।

सिरहा गांव पहुंच कर जत्था ने गांव के युवाओं के बीच संवाद किया और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।कल पदयात्रा के अंतिम दिन मोतिहारी शहर के गली नुक्कड़ में सांस्कृतिक संवाद करेगा। जनगीत, नाटक और नृत्य के माध्यम से प्रेम, बंधुत्व समानता न्याय और मानवता की बात करेंगे। दोपहर 2 बजे से गांधी संग्रहालय मोतिहारी में समापन समारोह आयोजित किया गया है।

समापन समारोह में प्रख्यात अभिनेता जावेद अख्तर खान, वरीय चिकित्सक डॉ सत्यजीत, इप्टा के बिहार महासचिव फीरोज अशरफ ख पूर्व विधायक रामाश्रय प्रसाद सिंह गांधी स्मारक के सचिव श्री बृज किशोर सिंह सामाजिक कार्यकर्ता अमर विनय मनकेश्वर पांडे सहित अन्य लोक संबोधित करेंगे।

सिसवा पूर्वी से प्रखंड प्रमुख बंजरिया चमन जी चमन जी और स्थानीय मुखिया पंचायत समिति सदस्य पूर्व विधायक रामेश्वर प्रसाद सिंह अमीरुल होडा सहित अन्य लोगों ने विदा किया।