सृष्टिकाल से ही है दीपावली की परंपरा 

सृष्टिकाल से ही है दीपावली की परंपरा 

सृष्टिकाल से ही है दीपावली की परंपरा 

P9bihar news 

प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
दीपावली का विश्व प्रसिद्ध पर्व आज सर्वत्र हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। दीपावली का इतिहास अति प्राचीन है। वेद,पुराण एवं अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख तथा धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के स्वरूप और महिमा का व्यापक वर्णन मिलता है। देवी लक्ष्मी सम्पूर्ण ऐश्वर्य,चल-अचल संपत्ति,यश,कीर्ति एवं सफल सुख-वैभव को देने वाली साक्षात् नारायणी हैं तथा गणेश जी समस्त विघ्नों के नाशक,अमंगलों को दूर करने व सद्विद्या एवं बुद्धि के दाता हैं।

कुबेर धनाध्यक्ष हैं,ये धन संचय को सम्भव बनाते हैं। दीपावली के दिन संयुक्त रूप से इनकी पूजा-अर्चना करने से परिवार में धन-सम्पत्ति का सुख चिरकाल तक बना रहता है। उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से लक्ष्मी का प्रादुर्भाव के उपलक्ष्य,भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने के उत्सव,नरकासुर के वध की खुशी व राजा बलि के राज्य में दीपमालिका करने के नियम आदि कारणों से दीपावली का पर्व मनाया जाता है।

कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन से माँ लक्ष्मी का प्रादुर्भाव होने के कारण जब पुनः तीनों लोकों में खुशहाली लौट आयी थी तब त्रिदेव सहित सभी देवी-देवताओं,राक्षसों तथा मनुष्यों ने भी माँ लक्ष्मी का विभिन्न प्रकार से पूजन किया एवं दीप जलाकर प्रकाश किया। इसलिए इस दिन इनका पूजन धन,समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि दीपावली के दिन लक्ष्मी एवं दरिद्रा दोनों बहने साथ साथ निकलती हैं।

जहाँ प्रकाश व प्रसन्नता होती है वहाँ लक्ष्मी तथा जहाँ अन्धकार और कलह होता है वहाँ दरिद्रा निवास करने लगती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ऋषि-मुनि एवं पूर्वजों ने अपने घरों की सफाई कर पंक्ति में अनेक दीप जलाने की परंपरा का निर्वहन करते आए हैं। 

कैसा जलायें दीपक:-

दीपावली के दिन घी का दीपक उत्तम,सरसों या तिल का तेल मध्यम तथा केरोसिन तेल का दीपक निकृष्ट माना गया है।लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त्त:- इस दिन लक्ष्मी पूजन के लिए चार विशेष मुहूर्त्त हैं। स्थिर वृश्चिक लग्न प्रातः 07:51 से 10:08 बजे तक,कुम्भ लग्न दिन में 01:59 से 03:30 बजे तक, सबके लिए सर्वोत्तम प्रदोषकाल स्थिर वृष लग्न सायं 06:36 से 08:33 बजे तक तथा महानिशा में स्थिर सिंह लग्न रात्रि 01:04 से 03:18 बजे तक प्रशस्त मुहूर्त्त है।

विशेष पूजन सामग्री:-
 
लक्ष्मी पूजा में विशेष रूप से कमलपुष्प,कमलगट्टा,नारियल,हल्दी गाँठ,खड़ा धनिया,मजीठ,कौड़ी,धान का लावा,दही एवं गुड़ आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न व ऋतुफलों का अर्पण किया जाता है।विशेष पाठ:- इस दिन माता लक्ष्मी के विधिवत पूजन के पश्चात् श्रीसूक्त,पुरुषसूक्त,अन्नपूर्णा स्तोत्र तथा कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अत्यन्त कल्याणकारी होता है।