टीबी के इलाज में बाधा नहीं बनी परदेस की रोटी, मिली वहीं दवाएं व उपचार

टीबी के इलाज में बाधा नहीं बनी परदेस की रोटी, मिली वहीं दवाएं व उपचार

. महाराष्ट्र में भी विजय को मिल रही मुफ्त टीबी की दवाएं
. महुआ के रसूलपुर फतेह का रहने वाला है विजय महतो
. टीबी की दवा खाते जाना पड़ा था बाहर कमाने

वैशाली, 2 जुलाई। 
रसूलपुर फतेह गांव के विजय महतो की अभी टीबी एमडीआर से जंग जारी ही थी। तभी उसे परिवार की रोजी रोटी के लिए राज्य से बाहर महाराष्ट्र जाना था। इसी उहापोह में एक दिन वह सदर अस्पताल के टीबी विभाग गया, जहां उसने अपनी इस पीड़ा को रखा। शंका और चिंता में व्याप्त विजय सदर अस्पताल से खुशहाल लौटा। आकर वह अपनी पत्नी को कहता है कि मुझे चाहे कमाने के लिए देश में कहीं जाना पड़े। मेरी दवाई वहां भी बिल्कुल मुफ्त मिलेगी और उपचार भी। इसके बाद विजय महतो महाराष्ट्र के रायगढ़ चला गया। जहां वह अपनी दवाई का कोर्स भी पूरा कर रहा और उसे उचित उपचार भी मिल रहा है। अब उसके कोर्स के कुछ महीने ही बाकी हैं और वह अपने आप को बिल्कुल स्वस्थ्य भी महसूस कर रहा है। 

पिछले साल नवंबर में गया रायगढ़-
विजय महतो कहते हैं कि उन्हें टीबी की बीमारी 2019 से थी। पहले प्राइवेट में दिखाया। डॉक्टर ने कहा कि वह ठीक हो चुका है। इसके बावजूद भी उसकी हालत दिन प्रतिदिन और खराब होती जा रही थी। किसी ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह दी। महुआ में बलगम जांच करायी तो टीबी की पुष्टि हुई। यहीं से उसका इलाज शुरू हुआ। उसे 20 महीने दवाई खानी थी। 24 दिसंबर 2020 से उसने दवा की शुरुआत की। आर्थिक तंगी के कारण उसे पिछले वर्ष नवंबर में नौकरी के लिए रायगढ़  महाराष्ट्र जाना पड़ा। अस्पताल से मिलने पर उसकी सारी फैसिलिटी रायगढ़ में ऑनलाइन ट्रासंफर कर दी गयी। जिससे वह  वहां भी अपनी टीबी की दवाई और उपचार रायगढ़ में भी जारी रख पाया।
 
मिल रहा निक्षय पोषण योजना का लाभ-
विजय महतो कहते हैं कि उन्हें निक्षय पोषण योजना के तहत मिलने वाली राशि भी रायगढ़ में मिल रही है। जिससे वह अपने लिए पोषण का ध्यान रख पाते हैं।
 
पिता की मौत टीबी से -
विजय कहते हैं कि मेरे पिता की मौत भी टीबी से हुई थी। जब मुझे नौकरी के लिए राज्य से बाहर जाना था तो मैं थोड़ा घबरा गया था। मैं जानता था कि मुझे टीबी है। मैं अपने परिवार के लिए रिस्क नहीं लेना चाहता था। सरकार की स्कीम के तहत मुझे मेरी दवाएं और उपचार देश में कहीं भी मिल सकती थी। डॉक्टर साहब की इस बात ने मुझे खुशी के साथ अपने परिवार के लिए रोटी जुटाने की भी हिम्मत दी।