चैती छठ पूजा:व्रतियों ने रखा निर्जला उपवास, अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को दिया अर्घ्य
घाट पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
दिवाकर कुमार
बगहा।चैत्र माह में मनाया जाने वाला लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर व्रतियों, श्रद्धालुओं में काफी उत्साह दिखा। नहाय खाय और खरना के साथ शुरु होने वाले छठ महापर्व की महानता, प्रसिद्धि सर्वव्यापी है। व्रतियों के लगभग बहत्तर घंटो का उपवास के साथ पूरे श्रद्धाभाव व निष्ठा से मनाया जाना वाला महापर्व छठ देश भर में काफी लोकप्रिय है।
लोग मनोकामना पूर्ण होने के बाद अथवा पूरी होने के लिए छठ का व्रत करते हैं। इस वर्ष सात अप्रैल गुरुवार को व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को संध्या 6:14 तक तथा आठ अप्रैल शुक्रवार को प्रातः लगभग 6:00 बजे उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देवता का पूजन कर छठ माता की पूजा किए।
छठ व्रती उषा काल में ही सूर्य के उगने के इंतजार में उन्हें अर्घ्य देने के लिए गंगा नदी के तट पर जल में खड़े थे। इस वर्ष व्रतियों, श्रद्धालुओं व बच्चों में यह उत्साह इसलिए भी खास रहा क्योंकि लोग विगत वर्षों के कोरोना काल के कारण घरों में सिमट से गए थे।
इस वर्ष घाट पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रही।नागेंद्र सिंह,सूर्या कुमार,सतेंद्र कुमार,छोटे श्रीवास्तव सहित गृहिणी आरती देवी, नेहा देवी तथा बगहा नगरपरिषद के स्वच्छता के ब्रांड एम्बेसडर सुनिल कुमार राउत आदि लोगों ने कहा कि छठ माता की महिमा अपरम्पार है। सच्चे मनसे मांगी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है
यहीं कारण है कि अधिकांश लोग चैती छठ का व्रत भी कर रहें हैं। लोगों में चैती छठ मनाने का प्रचलन काफी बढ़ा है। यह हमारी प्राचीन संस्कृति से जुड़ा हुआ है जिसमें सभी वर्गों की सहभागिता होती है खासकर समाज के अनुसूचित जाति के लोग द्वारा बनाए गए सूप, दऊरा का काफी महत्व होता है। वहीं कुम्हार के बनाए दीप, कोसी आदि से भी पूजा की जाती है।
मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु भरते हैं कोशी
व्रती और श्रद्धालु लोग अपनी मनोवांछित मनोकामना पूरी होने पर अथवा पूर्ण होने के लिए संध्या अर्घ्य के बाद घाट से लौटने के उपरान्त कोशी भरकर छठ पूजा अर्चना करते हैं।
इसमें मिट्टी से बने हाथी, कोशी आदि को चारो तरफ से गोलाकार में सजाकर उनमें दीप बत्ती जलाकर फल, प्रसाद रख गीत गाकर गन्ने के बीच में पूजा की जाती है। इस माह में गन्ने की खेती लगभग समाप्त सी हो जाती है फिर भी छठ माता की कृपा से सभी व्रतियों के लिए कहीं ना कहीं से गन्ने का प्रबंध हो ही जाता।