शेखर जोशी की कहानियों में एक बिम्ब है जो सबसे अलग है- डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव

शेखर जोशी की कहानियों में एक बिम्ब है जो सबसे अलग है- डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव

शेखर जोशी की कहानियों में एक बिम्ब है जो सबसे अलग है- डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव

P9bihar news 


प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के हिंदी विभाग में हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रख्यात साहित्यकार शेखर जोशी की श्रद्धांजलि सभा सह परिचर्चा गाँधी भवन परिसर स्थित नारायणी कक्ष में गुरुवार को आयोजित की गई।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने अपने उदबोधन कहा कि सर्वप्रथम मैं शेखर जोशी को श्रद्धांजलि देता हूँ।श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के लिए आपने 70 कहानियों को दिया है। शेखर जोशी की कहानियों में स्थानीयता का बोध नहीं है लेकिन कहानी के वातावरण में पहाड़ जरूर आता है।

इनकी कहानियों में एक बिम्ब है जो सबसे अलग है, इन कहानियों में प्रेम मौन है, मर्यादा का भाव है, सौंदर्य का बोध है। पीड़ा भरी प्रतीक्षा नई कहानी की विशेषता है, प्रेम को बचा लेना ही साहित्य की चेतना है जो शेखर जोशी की कहानियों में हमें मिलती है। नई कहानी का रचाव महत्वपूर्ण होता है,जो जोशी जी की कहानियों में मिलती है,इनकी पहली कहानी मोह-भंग से शुरू होती है। लेकिन उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी 'कोसी का घटवार' ही है।हिंदी विभाग के सह- आचार्य डॉ गोविंद प्रसाद वर्मा ने शेखर जोशी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनके जीवन में हुई घटनाओं का उनकी लेखन पर विशेष प्रभाव है, क्योंकि बचपन में ही उन पर से मां-बाप का साया उठ गया उसे वह अपनी कहानियों का विषय बनाते हैं।

नई कहानी के हस्ताक्षरों में निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, अमरकांत के साथ शेखर जोशी का भी नाम आता है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद उपजी कुंठा,संत्रास और अवसाद को बखूबी अपनी कहानी व कविताओं में उभारा है।इस मौके पर कई शोधार्थियों ने भी शेखर जोशी के साहित्य लेखन पर अपने विचार व्यक्त किए।


शोधार्थी अवधेश कुमार ने कहा कि उनके जीवन के तीन भाग हैं पहाड़ी जीवन, मध्यवर्गीय जीवन और औद्योगिक जीवन। जबकि शोधार्थी विकास गिरि ने कहा कि उनके रचनाओं में विविध रंग है। ग्राम्य जीवन, पहाड़ की दिनचर्या और औद्योगिक कार्य व्यवहार को हम देख सकते हैं। शोधार्थी सोनू कुमार ठाकुर ने शेखर जोशी की कहानियों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा की कहानी की सफलता उसकी शिल्पगत विशेषता है। उनकी कहानी 'दाजयू' में पहाड़ की विशेषता है।

यहां कहानीकार अपने पात्रों में विरोधी तेवर भरते हैं। 'बदबू' कहानी में औद्योगिक कार्य स्थलों में जीवन व्यवहार को बताया गया है, उस गरीब श्रमिक की प्रतिरोधी चेतना जो धार बनकर उभरती है उसे बखूबी चित्रण किया गया है। कहानी 'कोसी का घटवार' में प्रेम धीमी आंच पर पकता है लेकिन वह किसी परिणीति तक नहीं पहुंच पाता है। इस कहानी को पढ़ने के बाद हम मौन हो जाते हैं या अपने आप में साहित्य का सौन्दर्य है।


शोधार्थी रश्मि सिंह ने शेखर जोशी को विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार काफकां से प्रभावित बताया और कहा की उनकी निर्मिती विश्व के अग्रणी साहित्यकारों के पढ़ने-लिखने और मनन करने से हुई। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि हमारी सामूहिकता समाप्त हो रही है, यह सबसे बड़ा बदलाव समाज में हो रहा है क्योंकि व्यक्ति एकांकी,कुंठा, संत्रास को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। बरहाल तेवर के साथ जीना शेखर जोशी हमें सिखा जाते हैं।

कार्यक्रम प्रारम्भ होते ही सभागार में उपस्थित सभी ने दो मिनट का मौन रख शेखर जोशी को श्रद्धांजलि अर्पित किया।मंच का सफल संचालन शोधार्थी प्रतीक कुमार ओझा ने किया। जबकि समारोह में स्वागत वक्तव्य देते हुए हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने कहा कि जनतंत्र की इच्छा रखने वाले साहित्यकार हैं शेखर जोशी, अपनी कहानियों को उन्होंने पूरी संवेदनशीलता के साथ उकेरा है, जो उन्हें अन्य कथाकारों से अलग करता है। अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापन  सच्चिदानंद ने किया।