लता मंगेशकर स्मरण सभा का आयोजन गांधी भवन परिसर में
रिपोर्टर प्रमोद कुमार
मोतिहारी,पू०च०।
महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिहार के तत्वावधान में "मेरी आवाज ही पहचान है:यादों में लता मंगेशकर" स्मरण सभा का आयोजन गांधी भवन परिसर में किया गया। लता मंगेशकर की कला-यात्रा को साथ-साथ जीने के क्रम में विश्वविद्यालय परिवार के शिक्षकों,शोधार्थियों,विद्यार्थियों ने अपने विचार रखे।
प्रो.पवनेश कुमार(संकाय प्रमुख,पण्डित मदन मोहन मालवीय वाणिज्य एवं प्रबंधन संकाय) ने कहा कि, लता जी ने मानव जीवन के सभी भावों को अपने गीतों में प्रस्तुत किया है। लता जी संगीत की बेंचमार्क हैं। पीढ़ियों ने लता मंगेशकर को देखा,जिया और महसूस किया है।प्रो.प्रणवीर सिंह(कुलानुशासक सह आचार्य,जंतु विज्ञान विभाग) ने कहा कि आज हमनें अभिव्यक्ति का माध्यम खो दिया है। शब्दों को अनुप्राणित करने वाली लता मंगेशकर सभ्यता की निर्बाध यात्रा हैं।
तकनीक ने अपने विकास की यात्रा लता मंगेशकर के गीतों के साथ तय की है।प्रो.प्रसूनदत्त सिंह(परिसर निदेशक-गांधी भवन, अध्यक्ष-संस्कृत विभाग) ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि, लता जी का जाना क्षति-पूर्ति से परे है।
सृजन की यात्रा में ईश्वर चाहकर भी दूसरी लता मंगेशकर नहीं रच सकता।प्रो.राजेन्द्र सिंह(संकाय प्रमुख,मानविकी एवं भाषा संकाय) ने कहा कि, जीवन का 'चरमोत्कर्ष' लता मंगेशकर हैं। यदि ईश्वर की आवाज़ है तो वह लता मंगेशकर जैसी है।डॉ. सुनील महावर(अध्यक्ष,गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग) ने लता मंगेशकर के गीतों के 'दार्शनिक' पहलू की ओर संकेत किया। प्रो.महावर ने कहा कि, 'कुछ पाकर खोना है
कुछ खोकर पाना है' पंक्ति जीवन के सत्य को उद्घाटित करती है।प्रो.अजय कुमार(आचार्य,भौतिक विज्ञान विभाग),डॉ. श्याम कुमार झा(सह-आचार्य,संस्कृत विभाग),डॉ. अम्बिकेश त्रिपाठी(गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग), डॉ. नरेन्द्र सिंह(सहायक आचार्य,राजनीति विज्ञान विभाग), डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र(सहायक आचार्य,माध्यम अध्ययन विभाग), डॉ. बबलू पाल(संस्कृत विभाग) आदि ने लता मंगेशकर की कला-यात्रा को अपने अनुभवों से अभिव्यक्त किया।कार्यक्रम का संचालन रश्मि सिंह(शोधार्थी,हिन्दी विभाग) ने किया।