धनत्रयोदशी (धनतेरस),धन्वंतरि जयंती एवं शनि-प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर शनिवार को

धनत्रयोदशी (धनतेरस),धन्वंतरि जयंती एवं शनि-प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर शनिवार को

धनत्रयोदशी (धनतेरस),धन्वंतरि जयंती एवं शनि-प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर शनिवार को

P9bihar news 

प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
धनत्रयोदशी (धनतेरस) एवं धन्वंतरि जयंती का प्रसिद्ध पर्व प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि में 22 अक्टूबर शनिवार को मनाया जाएगा। पुत्र की कामना से शनि-प्रदोष व्रत भी इसी दिन किया जाएगा। कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को धन त्रयोदशी (धनतेरस) और धन्वंतरि जयंती दोनों ही मनाने का विधान है।इस वर्ष धनतेरस पर खरीददारी तथा पूजन के लिए वृश्चिक लग्न में प्रातः 07:59 से 10:16 बजे तक,कुम्भ लग्न दिन में 02:06 से 03:38 बजे तक,वृष लग्न सायं 06:44 से 08:41 बजे तक तथा सिंह लग्न (पूजा के लिए विशेष) मध्य रात्रि 01:12 से 03:36 बजे तक का उत्तम मुहूर्त्त है।

उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन में कलश के साथ भगवती लक्ष्मी का अवतरण हुआ था,उसी के प्रतीक स्वरूप ऐश्वर्य वृद्धि के लिए इस दिन नई चीज खासकर बर्तन,सोना,चाँदी,वस्त्र आदि खरीद कर लाने का विधान है। कहीं कहीं इस दिन झाडू खरीदने की भी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन धन का अपव्यय नहीं किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन धन का अपव्यय रोकने से अगले वर्ष धन का संचय होता है।

प्राचार्य ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार धनतेरस को प्रदोषकाल (सायंकाल) में जो अपने घर के दरबाजे पर घी का दीप जलाता है,उसे अकाल मृत्यु या दुर्मरण का भय नहीं होता। इस दिन दीपदान करने से मृत्यु,पाश,दण्ड,काल और लक्ष्मी के साथ सूर्य नंदन यम प्रसन्न होते हैं।धनवंतरि जयंती के सम्बंध में भागवत महापुराण के अनुसार श्री पाण्डेय ने बताया कि भगवान विष्णु के अंशावतार वे हीं धन्वंतरि के नाम से प्रसिद्ध हुए और आयुर्वेद के प्रवर्तक कहलाये।

कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को उनका आविर्भाव हुआ था। आज भी प्रतिवर्ष इसी तिथि को आरोग्य देवता के रूप में उनकी जयंती मनाई जाती है। स्मृतिमात्रार्ति नाशनःʼʼ के अनुसार उनके नाम का स्मरण मात्र से ही समस्त रोग दूर हो जाते हैं।