क्लीनिकल जांच भी टीबी का पता लगाने में अहम
क्लीनिकल जांच भी टीबी का पता लगाने में अहम
- टीबी में सबसे महत्वपूर्ण है एक्सरे करवाना
प्रमोद कुमार
P9bihar news
वैशाली।
टीबी एक संक्रामक रोग है। सामान्य तौर पर यह रोग अधिकतर फेफड़ों में होती है। वहीं कभी -कभी यह फेफड़ों के बाहर जैसे हड्डियों, आंतों, त्वचा सहित अन्य कई जगहों को भी संक्रमित करता है। जिले के पूर्व संचारी रोग पदाधिकारी डॉ शिव कुमार रावत ने कहा कि ऐसे तो टीबी की जांच माइक्रोस्कोपिक विधि से भी की जाती है। किंतु क्लीनिकल जांच भी टीबी मरीजों की खोज में अहम भूमिका निभाता है।
कुछ केस ऐसे होते हैं जिनका माइक्रोस्कोपिक जांच नेगेटिव आता है पर क्लीनिकल जांच में उसके टीबी होने का पता लगता है। इसलिए विभाग हमेशा टीबी मरीजों की माइक्रोस्कोपिक जांच के साथ क्लीनिकल जांच करता है। ताकि टीबी का सही-पता लग सके। माइक्रोस्कोपिक जांच मौजूदा समय में बलगम की माइक्रोस्कोप और ट्रु-नेट मशीन से की जाती है। हांलाकि यह मशीनें अपना शत -प्रतिशत देती हैं फिर भी कभी कभी संक्रमण का पता नहीं चल पाता है।
ऐसे में क्लीनिकल जांच की महत्ता और बढ़ जाती है।डॉ रावत ने कहा कि एक्स-रे का इस्तेमाल मेडिकल जगत में काफी पहले से हो रहा है। यह मशीन टीबी के रोगियों का पता लगाने में काफी हद तक सक्षम है। इसके नतीजे हमेशा सटीक होते हैं। इसके अलावा क्लीनिकल टेस्ट में सीटी-स्कैन, अल्ट्रासाउंड भी आता है। पर इनमें सबसे सस्ता और सुलभ एक्स-रे ही है। मेरा मानना है कि कोई भी चिकित्सक टीबी के संदिग्ध मरीजों की माइक्रोस्कोपिक जांच करे। इसके अलावा वह प्रत्येक मरीजों की एक्स-रे जरूर करें।डॉ रावत ने कहा कि मोंटेक्स परीक्षण भी टीबी के परीक्षण में काफी मायने रखता है।
यह टीबी का पता लगाने के लिए एक त्वचा परीक्षण है जो अधिकतर बच्चों के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें त्वचा पर एक गोल सर्कल कर कुछ दवाओं का परीक्षण किया जाता है। अगर त्वचा रिएक्टिव होती है तो उसे टीबी का संक्रमित मान लिया जाता है। अब इसका प्रयोग उन लोगों के लिए भी किया जाने लगा है जिनके यहां घर में टीबी के मरीज पाए जाते हैं।