बजरंगबली का ननिहाल,गौतम ऋषि ,अहिल्या का तपोभूमि रिविलगंज 

बजरंगबली का ननिहाल,गौतम ऋषि ,अहिल्या का तपोभूमि रिविलगंज 

बजरंगबली का ननिहाल,गौतम ऋषि ,अहिल्या का तपोभूमि रिविलगंज 

P9bihar news 


सत्येेन्द्र कुमार शर्मा

सारण :-  सारण जिले का रिविलगंज प्रखंड बजरंगबली का ननिहाल,गौतम ऋषि का तपोभूमि, अहिल्या का उद्धार स्थली भारतीय लोकतंत्र में अपने अध्यात्मिक गौरव के बनाए रखने के लिए विकास की बाट जोह रहा हैं। लम्बे समय से रिविलगंज में हर साल भव्य पूजा का आयोजन किया जाता रहा हैं। मान्यता के किंबदंती के अनुसार यहां नवमी के दिन अपनी माता के साथ बजरंगबली आते हैं।


भगवान शिव के रूद्र अवतार और रामायण के सबसे अनोखे चरित्र भगवान बजरंगबली हनुमान का रिविलगंज में ननिहाल होने की अध्यात्मिक मान्यता है।लेकिन अब तक रिविलगंज को रामायण सर्किट से नहीं जोड़ा गया है जबकि रिविलगंज रामायण और पुराणों में वर्णित एक ऐसा स्थान है जहां से राम और भगवान हनुमान बजरंगबली, गौतम ऋषि और अहिल्या देवी का नाम जुड़ा हुआ है। सामान्य तौर पर तो रिविलगंज का यह स्थल श्रद्धा के केंद्र तो है ही लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्र में इनकी आध्यात्मिक महिमा और भी बढ़ जाती है।

चूंकि शक्ति का यह केंद्र अपनी उर्जा से ओतप्रोत हो जाता रहा हैं और लोगों को मनोवांछित फल प्रप्ति के लिए भक्तों का यहां आना-जाना भी लगा रहता है।सारण जिले के रिविलगंज प्रखंड के रिविलगंज बाजार स्थित पक्की ठाकुरबाड़ी अखाड़ा नंबर 1 यह पूरे देश में संभवतः सारण ही ऐसा स्थान है जहां बजरंगबली की हर साल विभिन्न भाव भंगिमा हो और कृतित्व दर्शाती हुई नई प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और 7 दिनों की पूजा अर्चना के बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है।हर साल शारदीय नवरात्र की नवमी को बजरंगबली के नेत्र खोले जाते हैं और आश्विन पूर्णिमा तक सुंदरकांड बजरंग बान और हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ किया जाता रहता है

अगले दिन प्रतिपदा को प्रतिमाएं पंडाल से उठा ली जाती हैं और 24 घंटे के नगर भ्रमण के बाद दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को रिविलगंज से 3 किलोमीटर दूर श्री नाथ बाबा मंदिर के किनारे सरयू नदी में विसर्जित की जाती हैं।इस दौरान गाजे-बाजे हाथी घोड़े और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ विसर्जन यात्रा की शोभा देखते ही बनती है। मान्यता है कि रिविलगंज सारण जिला में स्थित है जो कि बजरंगबली का ननिहाल है सरयू नदी किनारे गोदना में उनके नाना गौतम ऋषि का मंदिर है यहां बजरंगबली की भव्य स्थाई प्रतिमा स्थापित है।

लोगों का विश्वास है कि हर दशहरे की नवमी को बजरंगबली मां अंजना के साथ ननिहाल जरूर आते हैं।इसी कारण रिविलगंज में बजरंगबली की दशहरे में पूजा की जाती है। जानकारी के आधार पर सर्वप्रथम 1919 में दशहरे के दौरान रिविलगंज के अखाड़ा संख्या एक में बजरंग बली की प्रतिमा स्थापित की गई थी आज जिले भर में 100 से अधिक स्थानों पर बजरंगबली की पूजा की जाती है प्रतिमाएं वीर स्वरूप में होती हैं कहीं कंधे पर विराजमान श्रीराम व लक्ष्मण तो पैर के नीचे अहिरावण कहीं हाथों में सुमेरु पर्वत उठाए हुए अथवा पंचमुखी हाथ में गदा लिए बजरंगबली की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं।

सर्वाधिक महत्व अखाड़ा संख्या एक के बजरंगबली का ही है यहां 2057 तक कि मुख्य पूजा करने वाले लोगों की अर्जी लगी हुई है इन्हें हर मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है ।इस अखाड़े को पहली बार लाइसेंस ब्रिटिश शासन काल में 1932 में दिया गया था।रिविलगंज को बजरंगबली का ननिहाल मानते हैं। सरयू तट पर उनके नाना गौतम ऋषि का मंदिर विद्यमान है और वही अहिल्या उद्धार मंदिर भी स्थित है। इस वक्त पूजा की भव्य तैयारियां हो रही हैं और भगवान बजरंगबली के नेत्र भी खुल गए हैं।

1986 तक रिविलगंज में तीन अखाड़े थे इनमें दो अखाड़े बजरंगबली और एक मां दुर्गा की पूजा करने वालों की थी। आज नौ अखाड़े हैं जिनमें छह अखाड़े बजरंगबली के हैं यह सभी जिला मुख्यालय छपरा से 10 किलोमीटर दूर रिविलगंज प्रखंड के 5 से 6 किलोमीटर के बीच में है यहां भव्य महावीरी पूजा को लेकर तैयारियां शुरू हैं। प्रतिमाओं का निर्माण अखाड़े के पंडाल के पास हुआ है और पूजा हो रही है। अगर प्रचार प्रसार किया जाए तो रिविलगंज धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है ।रिविलगंज  के लोगों का कहना है कि नवमी के दिन से पूजा पंडाल में श्रद्धालुओं का सामूहिक सुंदरकांड पाठ देखते ही बनता है।

पूरा प्रखंड हनुमानमय हो जाता है।विसर्जन जुलूस के दौरान तिल धरने की जगह भी नहीं बचती है विशेष तौर पर बने ठेले पर बजरंग बली विराजमान किए जाते हैं ।24 घंटे की यात्रा के दौरान महोत्सव का माहौल रहता है 5 से 6 किलोमीटर का क्षेत्र महावीरी झंडे से पट जाता है और हर ओर जय श्री राम और जय बजरंगबली के जयकारों से गूंजता रहता है। यहां की अनोखी परंपरा का प्रचार-प्रसार हो तो यह स्थान धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।वैसे तो रिविलगंज को धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र बनाने के लिए बहुत सारे प्रयास चल रहे हैं लेकिन सारण जिले की राजनीतिक शक्ति इस क्षेत्र में कर्तव्यहीन नजर आ रही है।

प्रशासनिक अमले ने तो पूरी तरह से रिविलगंज को उपेक्षित कर रखा है और गौतम स्थान से चोरी की गई लक्ष्मण जी की मूर्ति आज तक बरामद नहीं हो पाई।उस अष्ट धातु की मूर्ति की कीमत करोड़ों रुपए में थी। स्थानीय स्तर पर कई लोग अपनी तरफ से प्रयासरत हैं।हाल ही में सरयू नदी में रिविलगंज पर सरयू आरती का आयोजन वहां के स्थानीय नागरिकों के द्वारा किया गया था जो कि एक सराहनीय प्रयास है।

यहा के स्थानीय प्रबुद्ध नागरिकों का कहना है कि रिविलगंज में बहुत सारी क्षमताएं विद्यमान है अगर उनका सही ढंग से अवलोकन और संयोजन किया जाए तो पूरे सारण जिले को वरन पूरे बिहार राज्य को लाभ हो सकता है। प्रयास जारी है इस स्थल को रामायण सर्किट से जोड़ा जाए और ऐसे में सारण जिले के प्रबुद्ध, राजनीतिक, प्रशासनिक, न्यायिक और सामाजिक क्षेत्र के लोगों से यहां के लोगों का हमेशा आग्रह है इस कार्य को जल्दी से जल्दी संपन्न किया जाए ताकि हमारे सारण जिले को एक बार फिर से नई पहचान बन सके।