नव संवत्सर के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र आरंभ
नव संवत्सर के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र आरंभ
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मोतिहारी। चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा (एकम) तिथि से सनातन धर्म का सर्वमान्य नव संवत्सर का आरंभ होता है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था। देशभर में इस नव संवत्सर को विभिन्न स्वरूप और परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा। तदनुसार आज मंगलवार से पिङ्गल नामक नव संवत्सर 2081 प्रारंभ होगा और इसी के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र भी प्रारंभ होगा।
इस वर्ष नव दिनों का पूर्ण नवरात्र एवं पन्द्रह दिनों का पूर्ण पक्ष शुभफलकारक है। चैत्र नवरात्र में आद्यशक्ति जगदम्बा के साथ नवगौरी के दर्शन-पूजन व दुर्गा सप्तशती के पाठ का पुण्यफलदायक विधान है।उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।उन्होंने बताया कि इस दिन चैत्र नवरात्र पूजन के निमित्त कलशस्थापन प्रतिपदा तिथि में प्रातःकाल से सायंकाल पर्यन्त किया जाएगा।
कलशस्थापन के लिए विशेष अभिजित् मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक है। अष्टमी तिथि की महानिशा पूजा 15 अप्रैल सोमवार को होगी तथा महा अष्टमी व्रत करने वाले श्रद्धालु 16 अप्रैल मंगलवार को व्रत करेंगे। महा नवमी का व्रत एवं रामनवमी का पुण्य पवित्र पर्व 17 अप्रैल बुधवार को मनाया जाएगा। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस दिन से ही श्रीरामचरितमानस की रचना आरंभ की थी।
नवरात्र अनुष्ठान व व्रत के समापन से संबंधित पूजन-हवन आदि 17 अप्रैल बुधवार को नवमी तिथि पर्यन्त सायं 05:22 बजे तक किया जा सकेगा। नवरात्र व्रत का पारण 18 अप्रैल गुरुवार को प्रातः 05:40 बजे के उपरान्त दशमी तिथि में किया जाएगा।प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि चैती छठ व्रत
का नहाय-खाय 12 अप्रैल शुक्रवार को,खरना 13 अप्रैल शनिवार को,सायंकालीन अर्घ्य 14 अप्रैल रविवार को तथा प्रातःकालीन अर्घ्य 15 अप्रैल सोमवार को दिया जाएगा। चैती छठ व्रत का विधान भी कार्तिक मास में पड़ने वाले छठपूजा की तरह ही होता है।