तापमान मेंं लगातार बृद्धि पारंपरिक बचाव के भोजन "सतुआन" का सतुआ
सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
प्रधान संपादक।
सतुआन के दिन से दिन के तापमान में लगातार बृद्धि जारी है।जो तापमान 45 डिग्री तक रविवार को चला गया।बताया जाता है कि सूर्य के मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करने के दिन को मेष संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे सतुआ संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। सौर मास या सोलर कैलेन्डर को मानने वाले लोग इसी दिन से नववर्ष काशुभारंभ भी मानते हैं।
प्रतिवर्ष चैत्र मास के खरमास की समाप्ति के दिन सूर्य के मेष संक्रान्ति में प्रवेश के मौके पर सतुआ संक्रान्ति सतुआन का पर्व मनाया जाता है।
14 अप्रैल को पूर्वाह्न 10:30 बजे सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश किए और सतुआ संक्रान्ति व सतुआन पर्व प्रातःकाल से सायंकाल तक मनाया गया।
हिन्दू धर्मावलंबी संक्रान्ति को अत्यधिक महत्व देते है। लोग खरमास समाप्ति और मंगल कार्यों की शुरुआत का दिन तो मानते हीं हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान तथा दान-पुण्य को भी बहुत महत्व दिया जाता है।
भोजपुरी आंचल मेंं सतुआ के सेवन की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है जो आज भी कायम है।
इस मौके पर प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही सत्तू,गुड़,चना,पंखा,जल युक्त मिट्टी का घड़ा,आम का टिकोला,ऋतुफल,नया अन्न आदि का दान करने को पुण्यफलदायक विधान मानते हुए अनुपालन भी करते है।
सदियों से इस दिन सत्तू खाने और दूसरे को खिलाने की भी परंपरा है। आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार सत्तू,गुड़ और जल से पूर्ण घड़ा दान करने से समस्त पापों का नाश होता है तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
रविवार को दिन में तापमान 45.डिग्री तक जाने की बात बताई जा रही है।जो सतुआ संक्रांति व सतुआन पर्व के परंपरागत रूप का स्मरण करा रहा है।
अमिताभ पाण्डेय अपने सिवान जिले के 'सतुवानी' का अहर्निश तीन स्तरीय सतुवा भोज की चर्चा कर मौसमी खाद्य सामग्री की पौराणिक याद को ताजा कर रहे हैं।
इधर मक्का+चना+जौ के सत्तू का अनुपातिक मिलन। नमक स्वानुसार। उधर चटनियों की ठेलमठेल। इमली की चटनी, आम की चटनी, धनिया पत्ता की चटनी, पोदिना+आम की चटनी, साथ में आम का आचार, भरवा मिर्च, चार भागों में कटे प्याज, हरी मिर्च और बगल में ठसक के साथ बैठे 'नून' महाराज।
स्तर 1: सत्तू के मिश्रण में स्वादानुसार नमक। सत्तू के मेड़ के एक तरफ सत्तू में ठंडा-ठंडा पानी, इसमें नीबू को निचोड़ मिलाते जाय,,,मिलाते जाय। फिर सत्तू का घोल,,,सटसटासट,,,सटसटासट,,,बीच-बीच में चटनी, प्याज वगैरह और सुड़क-सुड़क कर सत्तू का अतुलित आनंद।
स्तर 2: अब मेड़ वाले मिश्रित सत्तू सानिये रोटी के आटा की मानिंद।बीच-बीच में इसमें नीबू की रसधार। अब छोटी-छोटी सत्तू की गोलियाँ गपगपागप। कभी गोलियों को विविध चटनियों में डूबाकर खट्टे मीठे चटनी का आनंद लीजिए,,,बीच-बीच में प्याज कचकच, कचकच,,,कभी दाँत के नीचे हरी मिर्च कच। आरे माई !!ठंडा पानी गटगटागट।।।
स्तर 3: अब बड़ी थाली में बची खुची चटनी और शेष सामग्रियों का घोल। सुटूक-सुटूक। बम बम।
फिर दिनभर बीच-बीच में ठंडा जल गटगटागट। तबीयत मस्त,,,गरमी पस्त।।। सतुआनी जिंदाबाद।
कबो अइसन सतुवानी के भोज गरमी भर रोज होत रहे। अब सतुआनिये सतुआनिये।तापमान मेंं लगातार बृद्धि पारंपरिक बचाव के भोजन "सतुआन" का सतुआ
जब चइत अपना चरम पर रहेला,आ खेतिहर अपना खेत में तब घाम आ लूक आपन तेजी देखावे लागेला ,आ कटनी दंवनी.माथ पर होखे नया नया अनाज जौव, आलू ,कड़ईला, बूंट , मटर , मसुरी , तेलहन , गेंहू , घर में आवे लागेला संगे सगें आम के गाछ पर मोजर के टिकोढ़ा आ जाला "सतुआन" के याद ताजा हो जाला। सतुआन बिहार आ पूरबी उत्तर प्रदेश खाशकर भोजपुरी भाषी लोग के लोक-परब हउवे।
भोजपुरी के कहावत – "सतुआ के चार ईयार – चोखा, चटनी, पियाज, अचार"
वैज्ञानिक महत्व में
जब गर्मी बढ़ जाला, लू चलेला तब पानी लगातार पसीना बन के निकले लागेला, जवना से थकान होखे लागे ला,आ सतुआ खइला पर पानी पियत रहे के पड़ेला जवना से शरीर में पानी के कमी ना होखेला।
असली सतुआ जौ के ही होखेला बाकि केराई, मकई, मटर, चना, तीसी, खेसारी, आ रहर मिलावे से एकर स्वाद आ गुणवत्ता दूनों बढ़ जाला।
सतुआ के घोर के पीयल भी जाला, आ एकरा के सान के भी खाइल जाला। मैगी खाए वाला पीढ़ी के इ जान के अचरज होई की सतुआ साने में मिनटों ना लागेला. ना आगी चाही ना बरतन. गमछा बिछाईं पानी डाली आ चुटकी भर नून मिलाईं राउर सतुआ तइयार भरपेट खा के पानी पियत रही।