नव संवत्सर के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र का प्रारंभ 02 अप्रैल शनिवार से 

नव संवत्सर के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र का प्रारंभ 02 अप्रैल शनिवार से 

प्रमोद कुमार 

मोतिहारी,पू०च०।
चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से सनातन धर्म का सर्वमान्य नव संवत्सर का आरंभ होता है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था।

देशभर में इस नव संवत्सर को विभिन्न स्वरूप और परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा।तदनुसार 02 अप्रैल शनिवार से नव संवत्सर 2079 प्रारंभ होगा तथा इसी के साथ वासंतिक (चैत्र) नवरात्र भी प्रारंभ होगा।

इस वर्ष नौ दिनों का पूर्ण नवरात्र एवं पन्द्रह दिनों का पूर्ण पक्ष सामान्यतया शुभफलकारक है। चैत्र नवरात्र में आद्यशक्ति जगदम्बा के साथ नवगौरी के दर्शन-पूजन व दुर्गासप्तशती के पाठ का पुण्यफलदायक विधान है।उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।

उन्होंने बताया कि इस दिन चैत्र नवरात्र पूजन के निमित्त कलश स्थापन प्रातःकाल 05:50 बजे से दिन में 11:28 तक प्रतिपदा तिथि में किया जाएगा। ऐसे इस दिन प्रतिपदा तिथि दिन में 11:28 बजे तक ही है,परन्तु सूर्योदय की तिथि मानकर पूरे दिन कलश स्थापन आदि किए जा सकते हैं।

 अष्टमी तिथि की महानिशा पूजा 08 अप्रैल शुक्रवार को होगी। महा अष्टमी व्रत 09 अप्रैल शनिवार को होगा। महा नवमी का व्रत एवं श्री रामनवमी का पुण्य पवित्र पर्व 10 अप्रैल रविवार को मनाया जाएगा। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस दिन से ही श्रीरामचरितमानस की रचना आरंभ की थी।

इसके उपलक्ष्य में श्रीरामचरितमानस की भी जयंती मनाई जाएगी। नवरात्रि अनुष्ठान व व्रत के समापन से संबंधित पूजन-हवन आदि 10 अप्रैल रविवार को नवमी तिथि पर्यन्त रात्रि 12:08 बजे तक किया जा सकेगा। नवरात्र व्रत की पारणा 11 अप्रैल सोमवार को प्रातः 05:45 बजे के बाद दशमी तिथि में किया जाएगा।

प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि चैती छठ का नहाय-खाय 05 अप्रैल मंगलवार को,खारना 06 अप्रैल बुधवार को,सायंकालीन अर्घ्य 07 अप्रैल बृहस्पतिवार को तथा प्रातः कालीन अर्घ्य 08 अप्रैल शुक्रवार को दिया जाएगा। चैती छठ का विधान भी कार्तिक में पड़ने वाले छठपूजा की तरह हीं होता है।