नाग से मानव का संबंध श्रृष्टि के शुभारंभ से पूजा श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को अबतक

नाग से मानव का संबंध श्रृष्टि के शुभारंभ से पूजा श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को अबतक

नाग से मानव का संबंध श्रृष्टि के शुभारंभ से पूजा श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को अबतक

P9bihar news 

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,

सारण--नाग से मानव का संबंध श्रृष्टि के शुभारंभ से है।अध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार धरा पर श्रृष्टि का शुभारंभ भगवान शिव से है और उनके गले में सांप आदि काल से देखा जाता रहा हैं।शिवालयों में भगवान शिव के साथ नाग को भी पूजा जाता रहा है।


नागपंचमी का प्रसिद्ध पर्व इस वर्ष 02 अगस्त मंगलवार को मनाया जाएगा। वैसे भारतीय पंरपरा के अनुसार श्रावण शुक्लपक्ष पंचमी तिथि को नाग देवता की पूजा अर्चना करने का विधान चला आ रहा है।पंचमी के दिन पूजा अर्चना के कारण नागपंचमी के रूप में कहा एवं जाना जाता रहा है। इस दिन नाग जाति के प्रति लोगों में विशेष रूप से श्रद्धा एवं सम्मान निवेदन करते हुए दूध एवं लावा चढ़ाकर नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है।

सनातन धर्म में सर्प जाति की पूजा करना अपने आप में एक अद्भुत परंपरा है। यह उदात्त भाव केवल भारतीय संस्कृति में ही संभव है व पाया जाता है। नागपंचमी बल-पौरुष, ज्ञानवृद्धि, तर्कशक्ति एवं स्पर्धा के परीक्षण का पर्व भी माना जाता है। इसीलिए इस दिन अखाड़े का भी आयोजन किया जाता रहा है। महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय इस संदर्भ में विशेष रूप से जानकारी देते रहे हैं।प्रार्चाय पाण्डेय कहते है कि शास्त्रों के अनुसार संपूर्ण सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है।

उधर नाग देवता सदैव शिव के सहचर हैं जो शिव के गले में माला रुप में हमेशा विराजमान रहते हैं। जबकि शिव के एकादश रुद्र में हनुमान भी पूजीत हैं। इसलिए नागपंचमी के दिन शिव पूजन-रुद्राभिषेक एवं हनुमान पूजन के साथ नाग पूजन एक साथ किया जाता है।प्राचार्य पाण्डेय ने कहा है कि विज्ञान के अनुसार नाग जाति इस सृष्टि में मनुष्यों के लिए केवल प्राण घातक ही नहीं बल्कि प्राण रक्षक एवं उपकारक भी है।नागपंचमी के दिन नाग पूजन तथा दर्शन करने से नाग देवता संतुष्ट होते हैं,घर में समृद्धि आती है और सर्प भय से रक्षा होती है।


परंपरागत रूप से भी पूजा अर्चना किया जाता रहा है।पूजा अर्चना में नाग देवता को गाय का दूध धान का लावा चढ़ाया जाता है।घरों में बालू सरसों का छिड़काव वैदिक मंत्रोच्चार से किया जाता है।घरों के दरवाजे पर नाग देवता का चित्र गाय के गोबर से बनाने एवं घर के चारों तरफ गाय के गोबर से घेरा करने की भी परंपरा रही हैं।