मन्नत पूरी होने व मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु कोशी भरने की छठ परंपरा

मन्नत पूरी होने व मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु कोशी भरने की छठ परंपरा

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,


सूर्य उपासना व शक्ति पूजन का महाव्रत का कोशी भरने की परंपरा में.व्रती और श्रद्धालु लोग अपनी मनोवांछित मन्नत पूरी होने पर अथवा मनोवांछित फल पूर्ण होने के लिए संध्या अर्घ्य के बाद घाट से लौटने के उपरान्त अपने घरों के देवता के पास कोशी भरकर भी पूजा अर्चना करते हैं। कोशी पूजन के तहत मिट्टी से बने हाथी, छोटे छोटे कलश पर पकवान रखकर दीप जलाया जाता है।

कोशी आदि को चारो तरफ से गोलाकार में सजाकर उनमें दीप बत्ती जलाकर फल, प्रसाद रख गीत गाकर गन्ने के बीच में पूजा की जाती है। गौरतलब है कि इस माह में गन्ने की खेती लगभग समाप्त सी हो जाती है फिर भी छठ माता की कृपा से सभी व्रतियों के लिए कहीं ना कहीं से गन्ने का प्रबंध भी हो ही जाता।


घर के आंगन व घर के देवता के समक्ष कोशी भरने के पश्चात छठ प्रतिमा स्थल पर पून: अहले सुबह कोशी भरा जाता है।उदयाचल सूर्य के पूर्व घाट पर एवं छठ प्रतिमा के पास दिपक जलाया जाता है।इंख के उपरी भाग पत्ते को प्रतिमा स्थल पर तोड़ कर रख दिया जाता है।
सूर्य के अर्घ्य के लिए दौड़ा में अर्घ्य देने के पूजन सामग्री को ले जाने की परंपरा है।


व्रतियों द्वारा घाट पर उदयाचल एवं अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के 72.घंटे के अनुष्ठान शुक्रवार को भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पण के साथ संपन्न हो जाता है।


 चैत्र माह के षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला लोक आस्था सूर्य उपासना के महापर्व छठ को गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को व्रतियों द्वारा घाट पर अर्घ्य दिया गया।ठीक एक दिन पूर्व खरना के दिन भी अस्ताचल गामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया गया।वहीं श्रद्धालुओं में व्रत को लेकर.काफी उत्साह रहा। 


 व्रतियों के बहत्तर घंटो का उपवास के साथ पूरे श्रद्धाभाव व निष्ठा से मनाया जाना वाला महापर्व छठ देश विदेश में भी काफी लोकप्रिय है। लोग मन्नत पूरी होने के बाद अथवा मन्नत पूरी होने के लिए छठ व्रत का अनुष्ठान शदियों से करते आ रहे हैं।

इस वर्ष सात अप्रैल गुरुवार को व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को संध्या 6:14 तक अर्घ्य देकर सूर्य देवता का पूजन कर छठ माता कात्यायनी की पूजा किया। वहीं शुक्रवार आठ अप्रैल को प्रातः पाँच बजकर 37 मिनट पर सूर्योदय होने पर अर्घ्य देगें। छठ व्रती उषा काल में ही सूर्य के उगने के इंतजार में उन्हें अर्घ्य देने के लिए गंगा नदी के अलावा देश के कोने कोने में आसपास के नदी तालाब के तट पर जल में खड़े होकर पूजा करतें हैं।

इस वर्ष व्रतियों श्रद्धालुओं व बच्चों में यह उत्साह  इसलिए भी खास रहा क्योंकि लोग विगत वर्षों में कोरोना काल के कारण घरों में सिमट कर अपना अनुष्ठान संपन्न करने की बंदिशें रही है। इस वर्ष लोग बंदिशों से मुक्त होकर घाटों पर काफी संख्या में लोगों ने भीड़ मेंं अनुष्ठान संपन्न करने में जुटे हुए हैं।