भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कूष्माण्डा की उपासना आज
भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कूष्माण्डा की उपासना आज
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मोतिहारी,पू०च०।
आदिकाल से ही मनुष्य की प्रकृति शक्ति साधना की रही है। शक्ति साधना का प्रथम दुर्गा ही मानी जाती है। विश्व में किसी न किसी रूप में देवी की पूजा शक्ति रूप में प्रचलित रही है और वह मातृ देवता के रूप में अधिक प्रतिष्ठित है। वह शक्ति दुर्गा हो चाहे काली हो वह परम आराध्या ब्रह्ममयी महाशक्ति है जो विश्व चेतना के रूप में सर्वत्र व्याप्त है,वही विश्व की सृजनात्मक शक्ति मानी जाती है।उक्त बातें महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने कही।उन्होंने बताया कि माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
अपनी मंद हलकी हँसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है।कूष्माण्डा देवी की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।
इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमल पुष्प,अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कुष्मांड कुम्हड़े को कहते हैं। कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी ये कूष्माण्डा कही जाती हैं। नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है।इनकी आराधना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते हैं।
इनकी भक्ति से आयु,यश,बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डा की उपासना साधकों को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख,समृध्दि और उन्नति ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक-पारलौकिक उन्नति चाहने वाले को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए। चतुर्थी के दिन देवी को मालपुआ का भोग लगाना चाहिए।