देवोत्थान (देव प्रबोधिनी) एकादशी शुक्रवार को  

देवोत्थान (देव प्रबोधिनी) एकादशी शुक्रवार को  

देवोत्थान (देव प्रबोधिनी) एकादशी शुक्रवार को  

P9bihar news 


प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
गुरुवार को नहाय-खाय तथा शुक्रवार को देवोत्थान (देव प्रबोधिनी) एकादशी का पुनीत व्रत किया जाएगा। व्रत का पारण शनिवार को प्रातःकाल 06:30 बजे के बाद तुलसी-पत्र से किया जाएगा।ज्ञातव्य है कि तथा कथित कुछ लोगों के द्वारा अज्ञानतावश समाज में ऐसा भ्रम फैलाया जाता है कि शुक्रवार व शनिवार को पड़ने वाला (शुक्र-शनिचरी) एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए,जो तथ्य बिल्कुल निराधार है।

निर्णयसिन्धु आदि किसी भी निर्णायक ग्रंथ में ऐसा उल्लेख नहीं है कि शुक्रवार व शनिवार को पड़ने वाला एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए। अतः व्रतियों को इस अफवाह पर ध्यान न देते हुए इस पुण्यफलदायक एकादशी व्रत को अवश्य करना चाहिए।उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय तथा उपाध्यक्ष पं•विनोद पाण्डेय ने संयुक्त रूप से दी।उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल एकादशी देव प्रबोधिनी,देवोत्थान या देव उठनी एकादशी के रूप में मनायी जाती है।

एकादशी सदा ही पवित्र तिथि है,विशेषतः कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी परम पुण्यमयी मानी गयी है। इस दिन भगवान विष्णु चारमास शयन के पश्चात् जागते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी को शंखासुर नामक राक्षस को परास्त किया। उसकी थकान मिटाने के लिए वे क्षीरसागर में जाकर चार मास तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है।

रात्रि में विष्णु की सविधि पूजा करने के पश्चात् घंटा,शंख,नगाड़े आदि की मधुर ध्वनि के साथ नृत्य,गीत एवं कीर्तन करते हुए-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुड़ध्वज। 
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्य मंगलं कुरु। ।
इस मंत्र का उच्चारण कर प्रभु से जागने की प्रार्थना करें। इसके बाद पुरुषसूक्त,विष्णु सहस्रनाम आदि का पाठ कर भगवान की आरती कर सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।जो मनुष्य कार्तिक शुक्लपक्ष की परम पुनीत देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत करता है वह उत्तम सुखों का उपभोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है।

बताया कि देवोत्थान एकादशी की रात्रि में अथवा पूर्णिमा पर्यन्त तुलसी विवाह का उत्सव भी मनाया जाता है। इस दिन तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है। तुलसी के वृक्ष को विविध प्रकार से सजाकर सुहागिन की भाँति सिंगार कर शालिग्राम का पूजन किया जाता है तथा शालिग्राम को सिंहासन सहित हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा करवायी जाती है। इस समय विवाह के मंगल गीत गाने का भी विधान है।