जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत श्रृष्टि के शुभारंभ से परंपरागत ढ़़ंग से निरंतर जारी

जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत श्रृष्टि के शुभारंभ से परंपरागत ढ़़ंग से निरंतर जारी

जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत श्रृष्टि के शुभारंभ से परंपरागत ढ़़ंग से निरंतर जारी

P9bihar news 

सत्येेन्द्र कुमार शर्मा।

मातृशक्ति द्वारा जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत व अनुष्ठान के एक दिन पूर्व से ही शुद्धता एवं स्वच्छता ख्याल के साथ विशिष्ट भोजन को तैयार कर व्रती अपनों एवं अपनों से जुड़े अन्य लोगों को खिलाने के साथ खाती हैं।मातृशक्ति जीवित्पुत्रिका जितिया अनुष्ठान श्रृष्टि के शुभारंभ से अब तक निरंतर परंपरागत ढ़़ंग से करते आ रही है।


जीवित्पुत्रिका जितिया महिलाओं का एक बहुत बड़ा अनुष्ठान जो अपने संतान की दीर्घायु एवं समृद्धि के लिए मातृशक्ति द्वारा किया जाता हैं।
अक्सर लोग बचपन से ही जीवित्पुत्रिका ,जितिया या यों जीउतिया पूजा करते मां को सभी लोग देखें हैं। यह एक याद जो लंबे समय के साथ चला आ रहा है।
इस व्रत पूजा के पहले यानी नहाय-खाय के दिन का और फिर व्रत के पूर्व बीती रात में जब काफी अंधेरा घीरा होता था तो मां अपने सभी बच्चों को कभी दीया, लालटेन तो कभी टॉर्च पकड़ाकर साथ में लेकर छत पर जाती। तब रात के अंधेरे में मातृशक्ति को "चिल्हो - सियारो" को खाना देना होता था। जो यह शोध का विषय है जो आज भी बड़ा रहस्यमय लगता हैं।


रात के अंधेरे में "चिल्हो- सियार" आयेंगे और नेनुआ-तरोई के पत्ते पर रखा खाना ग्रहण कर लेंगे। उसी के साथ उनको दातुन -पानी भी दिया जाना इस अनुष्ठान व व्रत का शोध का विषय आज भी बना हुआ है।जब बिद्युत की रोशनी नहीं तब रात के अंधेरे में किसी आहट को महसूस करने दीपक ,लालटेन लेकर माँ के आगे - आगे रास्ता दिखाने की बात अब नहीं रही लेकिन यादें ताजा जरूर हो जाती हैं।


समय आगे बढ़ाते गया अब घर में पत्नी फिर पुत्रवधू आई तो व्रत के पूजा का विधि विधान पूर्वत जारी रहा।कभी माँ तो कभी पत्नी तो आज पुत्रवधू ने व्रत का अनुष्ठान किया लेकिन परंपरा आज भी कायम है।सभी व्रती एक जगह जमा होकर व्रत कथा कहती हैं व पुरोहित से सुनती है और व्रत संपन्न की बीती रात अंधेरे में ही जलाशयों नदी में पूजन सामग्री प्रतिमा विसर्जन कर.मातृशक्ति समुह में भगवान शिव के गीतों को गाते जाती हैं।

इस मौके पर कुछ परंपरागत गीत भी गाए जाते हैं।गीतों के गायन के साथ मातृशक्ति इतना उछल - कूद करती कि यकीन नहीं होता कि इन्होंने चौबीस घंटे से पानी भी नहीं पिया हैं।तब सभी घर जाकर सात तरह के व्यंजन बनाने में जुट जाती हैं।और घर लौटकर सभी बच्चों के गले में जितिया का धागा पहनाते हुए दोने भर प्रसाद देती हैं।बच्चे उनके पांव छू लेते तब वह दूध या शर्बत के साथ अपना व्रत खोलती या संपन्न करती हैं।