हिस्सेदारी को लेकर बन्दी से आम-आवाम परेशान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विचार अहम 

हिस्सेदारी को लेकर बन्दी से आम-आवाम परेशान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विचार अहम 

हिस्सेदारी को लेकर बन्दी से आम-आवाम परेशान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विचार अहम 

P9bihar news 

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
पत्रकार।

न्यायालय के निर्णय के विरोध में आज की बन्दी से आम-आवाम को परेशान हुआ हालांकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में अब बंदी तो भारत का एक अहम हिस्सा बन गया है।तब कई सवाल अहम हो जाता है।अब तो न्यायालय के निर्णय पर भी बन्द करने का सिलसिला जारी हो गया है।विरोध का अन्य विकल्प की खोज भी तो किया जा सकता हैं।

खैर बन्दी से लाभान्वितों की परेशानी होगी ही वहीं बन्चितों के लाभ देने में विरोध का द्योतक भी समझा जा सकता है। जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका के निर्णय के विरोध में बंदी किया जाना शुरू होगा तो सुप्रीम कोर्ट के नामचीन सरकारी-गैर सरकारी वकीलों पर भी प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो जाएगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सारे वकीलों को कम्युनिस्ट विचारधारा से भरे पड़े बताया गया हैं। और कम्युनिस्टों का काम लड़ना और लड़ाना है।

वकील भारत के वकील हमेशा लड़ाने का प्रयास करते है। इसीलिए भारत के सभी समाज के सभी लोग एक जूट होकर सुप्रीम कोर्ट के जज सहित सभी जजों के नियुक्ति के लिए आरक्षण की बैशाखी से मुक्त परीक्षा का आयोजन होना चाहिए। ताकि,उनके सामाजिक अनुभव के बारे में पता चल सके समाज में क्या चल रहा है, क्या नहीं चल रहा है। इसके लिए वर्तमान राज्य एवं केन्द्र सरकार को विचार करना चाहिए। विधानसभा, विधानपरिषद, लोकसभा और राज्यसभा में इसको जल्दी से जल्दी पारित कर देना चाहिए।


चुकी बंदी से न जाने कितने ठेला, खोमचा वाले आज घर पर सब्जी नही ले जा पाएंगे। वैसे दिहाड़ी मजदूर अपने बच्चों को आज क्या खाएंगे।साथ ही मध्यम वर्ग वाले तो हमेशा पिसते रहते है, अमीरों को इस बंदी से कोई फर्क नही पड़ेगा।सवाल यह है कि ये भारत बंद करने वालों को यह सब नही दिखाई पड़ता है।बंदी करने वाले भारत के निवासी नही है। उन्हें भारत के गरीब लोग नही दिखाई पड़ते हैं।


हर हमेशा यह बंदी कतई उचित कदम नही हो सकता की एक को इंसाफ दिलाने में पूरे देश के गरीबों के साथ नाइंसाफी हो जाए। जैसे कई अनुत्तरित प्रश्न चिन्ह लग रहा है जिसके निराकरण की पहल की जरूरत है।