आपदा' को 'अवसर' में बदल डाला जैनब

आपदा' को 'अवसर' में बदल डाला जैनब


-- लॉकडाउन में नौकरी छूटने पर शुरू कर दिया मशरूम का उत्पादन

-- महज 400 रूपए से शुरू की खेती

--हर माह कर रही 40 से 50 हजार की कमाई

अंजनी अशेष 
मोतिहारी,पू०च०।
'आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा, वरना आंधी में दीया किसने जलाया होगा '
इस शेर में निहित जज्बे को अक्षरशः सच साबित कर दिखाया है ढाका प्रखंड के बरहरवा फत्ते महम्मद गांव की 23 वर्षीय युवती जेनब बेगम ने। अपनी जिजीविषा और संघर्ष की बदौलत उसने कामयाबी की नई इबारत लिख कर यह साबित कर दिया है कि कोई भी दुश्वारी इंसान की हिम्मत के सामने अधिक देर तक नहीं हटती। कोरोना संक्रमण काल में जब पूरी दुनिया अपने जीवन के लिए जद्दोजहद कर रही थी, महामारी के उस दौर में जैनब स्वरोजगार के माध्यम से सफलता की नई गाथा लिखने में मशगूल थी। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी और उर्दू अदब से ग्रेजुएट जैनब के लिए लॉकडाउन मुसीबतों की सौगात लेकर आया। उसकी और उसके वालिद दोनों की नौकरी छूट गई। परिवार मुफलिसी के गहरे समंदर में डूब गया। परिजनों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन स्वभाव से जुझारू जैनब ने अपनी मुश्किलों के सामने घुटने टेकने से इंकार कर दिया। 15 जून 2020 को वह फिर से नौकरी की तलाश में पटना जा रही थी, तभी उसकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से हुई जिन्होंने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया था। उन लोगों की बातों से प्रभावित होकर जैनब ने नौकरी का चक्कर छोड़ मशरूम की खेती करने की ठान ली। उसने उनके सानिध्य में मशरूम की खेती की बारीकियों को करीब से देखा, परखा और पूरी जानकारी इकट्ठा की। इस सिलसिले में उसने युट्यूब और गूगल की भी मदद ली। उसने 29 जून को बटन मशरूम का बीज (स्पॉन) मुजफ्फरपुर से खरीदा और शुरू कर दी खेती। इस प्रकार उसने महज 400 रूपए से मशरूम उत्पादन का कार्य शुरू किया। इस क्रम में मोतिहारी प्रखंड के लोकसा गांव के मुकेश सिंह ने इसकी मदद की और मशरूम उत्पादन के लिए जगह उपलब्ध कराई। जैनब ने लोगों से कर्ज भी लिए। उसकी मेहनत रंग लाई और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने उत्पादित मशरूम की मार्केटिंग के लिए उसने जिला मुख्यालय का रुख किया। देखते-देखते तीन महीने के अंदर ही उसकी पूंजी 50 हजार की हो गई। आज वह मशरूम बेचकर प्रतिमाह 40 से 50 हजार की कमाई कर रही है। मशरूम के साथ-साथ वह इसके अन्य उत्पादों अर्थात मशरूम अचार, मशरूम चॉकलेट, चटनी आदि का भी उत्पादन कर रही है। जैनब का कहना है कि वह पहले प्रोफेसर बनना चाहती थी, लेकिन अब वह मशरूम उत्पादन को अपना कैरियर बना चुकी है। इस कार्य में केवीके पिपराकोठी और केवीके परसौनी का भी तकनीकी सहयोग उसे मिलता रहा है। उसकी इच्छा है कि उसके द्वारा उत्पादित मशरूम और इसके अन्य उत्पादों को विदेशों में भी पहचान मिले। जैनब द्वारा संचालित चंपारण मशरूम उत्पादन एवं प्रशिक्षण केंद्र में वह किसानों को मशरूम उत्पादन के प्रशिक्षण के साथ रोजगार भी मुहैया करा रही है। एक रेस्टोरेंट खोलना उसका ड्रीम प्रोजेक्ट है। बकौल सहायक निदेशक उद्यान अजय कुमार सिंह, मशरूम पौष्टिकता  से भरपूर होता है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार इस पर अनुदान भी देती है। बहरहाल स्वरोजगार के क्षेत्र में जैनब का कार्य प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।