विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय में अनियमितताओं का ढ़ेर कार्रवाई सिफर

विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय में अनियमितताओं का ढ़ेर कार्रवाई सिफर

सत्येन्द्र कुमार शर्मा

सारण :- विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय में अनियमितता का ढ़ेर लगता चला जा रहा है।प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कार्रवाई नहीं करने के कारण कर्मियों में आक्रोश एवं क्षोभ व्याप्त है।


बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 57A की उप धारा 6 के आलोक मे 19 अप्रैल 2007 के पूर्व शासी निकाय द्वारा विधिवत नियुक्त और कार्यरत शिक्षकों की नियुक्ति और सेवा का नियमितीकरण करने का आदेश दिया गया था।


उक्त आदेश के अनुसार बिहार सरकार के स्वीकृत पद पर नियुक्ति के समय निर्धारित अहर्ता  के अनुसार नियुक्ति करने का आदेश दिया गया जिसके आलोक मे लोक महाविद्यालय के 30 शिक्षकों में मात्र 9 शिक्षक ही योग्य पाये गये।जबकि 21 शिक्षकों की सेवा को विश्वविद्यालय द्वारा निरस्त कर दिया गया | उक्त अधिनियम के अनुसार शिक्षकों की सेवा का नियमितीकरण दिनांक 31 मार्च 2018 तक ही करना था।लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा उक्त अधिनियम का तार तार कर निरस्त  किये गये 21 शिक्षकों की सेवा का नियमितीकरण तीन वर्षों के पश्चात् किया गया जबकि पैनल मात्र एक वर्ष तक ही मान्य होता हैं।


गौरतलब यह है कि महाविद्यालय के  एक लिपिक पद पर 1998 तक कार्य करने वाले कर्मी की सेवा का अनुमोदन शिक्षक के पद पर 03 जनवरी 1996 के प्रभाव से कर दिया गया।उस समय लिपिक के पद पर कार्यरत कर्मी के साथ 21 अवैध शिक्षकों के नामों के साथ गलत शिक्षक मतदान सूची प्रकाशन भी किया गया। विश्वविद्यालय के बगैर अधिसूचना के ही प्राचार्य योगेंद्र पाण्डेय द्वारा शासी निकाय के गठन के लिये शिक्षक प्रतिनिधि के लिये चुनाव करा कर अपराधिक कार्य किया गया हैं।जब शिक्षक एवं शिक्षक प्रतिनिधि प्रत्याशी द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति एवं अन्य विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों से संपर्क किया गया तो शासी निकाय की प्रक्रिया  शुरू होने की जानकारी से इनकार कर दिया गया हैं।


 बहरहाल विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 60 की उपधारा 1 और परिनियम 32 के उपपरिनियम 1 के आलोक में यूआर, जीआर, पीआर और प्राचार्य, चार सदस्यों के नामो को विश्वविद्यालय द्वारा नामित कर शासी निकाय की प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती हैं | उक्त प्रक्रिया के पूर्ण किये बेगैर किसी भी महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा टीआर एवं डीआर का चुनाव कराना और शिक्षाविद का सहयोजन कराना कानूनी अपराध बताया जा रहा हैं और इस अपराधिक कार्य में सहयोग करने वाले भर्ष्टाचार का बढ़ावा देने का काम करते हैं |

विश्वविद्यालय प्रशासन को प्राचार्य और उसमें संलिप्त कर्मियों के बिरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की मांग की चर्चा जोरों पर चल रही है।
 शिक्षक प्रतिनिधि प्रत्याशी देवेश चन्द्र राय ने बताया कि टीआर के चुनाव के लिए विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए निर्देश की छायाचित्र की जब मांग की गई एवं चुनाव पर्यवेक्षक का नाम पूछा गया तो प्राचार्य द्वारा कोई जानकारी नही दी गई और नहीं सूचना सार्वजनिक किया गया है।उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि क्या इनके बिना चुनाव होना जायज है।


उन्होंने कहा कि यदि महाविद्यालय के चंद कर्मियों के नाम लिए वगैर कहा कि नियम के विरुद्ध चुनाव कराया जाना सही लगता है तो अब मामला विश्वविद्यालय प्रशासन ही आवेदन के आलोक में निर्णय करेगा जो सर्वमान्य होगा।


उन्होंने कुछ शिक्षकों पर सत्ता का लाभ लेने के लिए कुछ भी गलत करने को तत्पर है जिसका नियमानुसार विरोध भी करना तैय है।चुकी महाविद्यालय उन चंद सत्ता के लोलुप कर्मियों का ही नहीं है।