डगमगाता लोकतंत्र पांव पसारता राजतंत्र मेंं अग्नि विरों की घोषणा से उठी आग और छिड़ी चर्चा

डगमगाता लोकतंत्र पांव पसारता राजतंत्र मेंं अग्नि विरों की घोषणा से उठी आग और छिड़ी चर्चा

डगमगाता लोकतंत्र पांव पसारता राजतंत्र मेंं अग्नि विरों की घोषणा से उठी आग और छिड़ी चर्चा

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,

भारतीत जनता पार्टी की सरकार सिर्फ 1 वोटों से संसद भवन में गिर गई। लेकिन सरकार की वापसी भी हुई।तब की भारतीय राजनीति में एक आदर्श की बात हमेशा कही जाती रही हैं। बातों में मुखर्जी, हेडगेवार से लेकर अटल, अडवाणी की पार्टी की मजबूत नींव रखना शामिल हैं।

लेकिन आज एक बार फिर सत्ता के विरुद्ध जनता पार्टी के गठन की जरूरत सामने दिखाई भी पड़ने लगी है।
 भाजपा वाजपेयी-अडवाणी की विचारधारा पर चलती रही राम के बताये मार्ग पर चलने की बात कही जाती रही। मर्यादा, नैतिकता, और शुचिता, इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे, तभी अटल-अडवाणी ने भारतीय राजनीति का एक लम्बा सफर तय किया।विरोधी दल के नेता के रूप में अटल के जेनेवा मेंं भारत का प्रतिनिधित्व भी चर्चा में रहा है।


मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरण चिन्हों पर चलने वाली भाजपा का अंत हो गया।अब भाजपा कर्मयोगी कृष्ण की राह पकड़ ली हैं।राम और कृष्ण दोनों ने अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं की हैं। छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से ,अधर्मी को अधर्म से नष्ट करना ही उनका ध्येय रहा है।

द्वापर के नायक अर्जुन को केवल कर्म करने की शिक्षा दी गई।कहा गया है कि बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए आज भाजपा के कार्यकर्ता कर्ण का अंत करते समय कर्ण के विलापों पर ध्यान ना दें रहें हैं।उन्हें केवल वे यह देख रहें कि अभिमन्यु की हत्या के समय कर्ण की नैतिकता कहाँ चली गई थी।लेकिन अभिमन्यु एवं कर्ण की हत्या के समय भारत माँ रुपी कुन्ती के पीड़ा दर्द विलाप पर किसी का ध्यान ही नहीं गया और नहीं जा रहा है।भीष्म पितामह की तरह अडवाणी आज भी इस लोकतांत्रिक युद्ध के मरण शैय्या पर मूल्यों का मूल्यांकन करने में लगें हैं।


द्वापर के कथा में कर्ण के रथ का पहिया जब कीचड़ में 
धंस गया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि पार्थ अब देख क्या रहे हो राजतंत्र के राजा का नैतिकता गद्दी पाना होता है तो मूल्यों की हत्या करने में देर नहीं करें। और नैतिकता को ताक पर रख कर संकट में घिरे कर्ण के लाख कहने पर भी अधर्म का सहारा लिया गया।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अभिमन्यु को घेर कर मारने और द्रौपदी को भरे दरबार में वेश्या कहने वाले के मुख से आज अधर्म की बातें करना शोभा नहीं देता है।


आज राजनीतिक गलियारा जिस तरह से संविधान की बात कर रहा है, तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं।कहा जा रहा है कि विश्वास रखो, महाभारत का अर्जुन नहीं चूका था । आज का अर्जुन भी नहीं चूकेगा।लोकतंत्र के चुनावी घोषणा पत्र के अमल में लाने की जगह गीता की पंक्तियों को याद किया जा रहा है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः!
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !
चुनावी जंग में जो कुछ भी जीत के लिए पार्टी के लिए किया जा रहे हैं, वह सब उचित माना जा रहा है।
राजतंत्र मेंं राजा द्वारा साम, दाम, दण्ड , भेद ,अपनाई जाने वाली तमाम नीतियाँ भारतीय गणराज्य मेंं की जा रही हैं।सत्ता से जुड़े लोग जिन्हें उपाय-चतुष्टय (चार उपाय) कहते हैं।


राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित बता रहे हैं।
उपाय चतुष्टय के अलावा तीन अन्य हैं - माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल की भी चर्चा की जा रही है।
राजनीतिक गलियारे में ऐसा विपक्ष नहीं है, जिसके साथ नैतिकता का नैतिक खेल खेला जा सके।सीधा धोबी पछाड़ ही आवश्यक हो चला है।लेकिन राष्ट्रपति चुनाव को लेकर यशवंत सिन्हा की विरोधी गठबंधन के प्रत्याशी रुप में आने मात्र से भारत में राम राज और गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक के आदर्श की कथाओं की चर्चा होने लगती है।साथ ही रामराज्य की कल्पना अब आंखों से ओझल होता जा रहा है।


राजतंत्र के राजा को दुनियाभर की सारी सुविधाएं उपलब्ध होने की बात द्वापरयुग मेंं भी कहा गया है तो त्रेतायुग में लंका को सोने की नगरी कहा जाता है।सर्वविदित है कि राम राज्य के राजा जंगल में रहे साथ ही अर्द्धांगिनी को ताउम्र अग्नि परीक्षा देना पड़ा है। आईए एक नजर आज के लोकतांत्रिक राजाओं पर नजर डालें।हमारे भारतीय गणराज्य मेंं विधायक- 4120,विधान परिषद सदस्य- 462,कुल 4,582 विधायक जिन पर वेतन भत्ता :- 2 लाख रुपए प्रतिमाह प्रति विधायक के हिसाब से 91करोड़ 64 लाख प्रतिमाह 1100 करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च किया जाता है।


लोक सभा-राज्य सभा:-776 सदस्य है। सांसद को प्रतिमाह 05 लाख रुपए ,कुल सांसदों को लगभग 465 करोड़ 60 लाख रुपए वेतन भत्ता दिया जाता है।
विधायकों एवं सांसदों पर प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़,60 लाख रुपए खर्च होता है।


आवास, भोजन, यात्रा:- देश-विदेश, इलाज पर कुल 30 अरब रुपए खर्च किया जाता है।विधायक के सुरक्षा पर 09 अरब,62 करोड़,22 लाख रुपए खर्च किया जाता है।सांसद के सुरक्षा पर 777 करोड़ रुपये खर्च किया जाता है।सत्ता पर काबिज पर 20 अरब एवं भूतपूर्व को मिला कर 50 अरब के करीब खर्च किया जा रहा है।


उधर अग्नि पथ योजना के अग्नि विरों की घोषणा के बाद युवाओं का उपद्रव से उठे सवाल पर लोगों के बीच अनेक चर्चा करते सुनीं जा रही है। गौरतलब है कि उक्त चर्चाएं तथ्य आधुनिक संचार माध्यमों पर भी आसानी से देखने सुनने एवं पढ़ने के लिए उपलब्ध है।