भाषा ने भूगोल व इतिहास को बदल दिया-प्रो. प्रमोद कुमार सिंह
भाषा ने भूगोल व इतिहास को बदल दिया-प्रो. प्रमोद कुमार सिंह
भाषा ने भूगोल व इतिहास को बदल दिया-प्रो. प्रमोद कुमार सिंह
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मोतिहारी,पू०च०।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के मानविकी व भाषा संकाय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, उत्तर बिहार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन बुद्ध परिसर स्थित बृहस्पति सभागार में किया गया।समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर मुजफ्फरपुर से पधारे बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार सिंह ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि भाषा ने भूगोल व इतिहास को बदल दिया, क्योंकि मातृ भाषा का प्रश्न अस्मिताओं का प्रश्न है।
बहू के साथ एकत्व और एकत्व के साथ बहू का सानिध्य भाषा के साथ होता है। भाषा का उत्थान होगा तो देश का भी विकास होगा। हम देखते हैं कि संस्कृत एक समावेशी भाषा है जिससे सभी भाषाओं को प्रवाह मिलता रहा है। भाषा के संदर्भ में ना कोई अपवित्र होता है ना कोई त्याज्य होता है। शोध करने के पीछे पूर्वाग्रह नहीं होता, जिज्ञासा होती है। लोक जीवन से साक्षात संबंध लोक की विशेषता है। कविता की प्रसिद्धि तब होती है जो वह जनता के होठों पर अठखेलियां करती हैं।
लोक भाषा का मर्म है कि वह शास्त्रीय भाषा में भी कोपले फूटने का अवसर प्रदान करती है। मौखिक साहित्य,लिखित साहित्य को सुदृढ़ता प्रदान करता है। मातृभाषा का अनुवाद संभव नहीं है,यह उसकी विशेषता है। हमारे समाज में कहा जाता है जिसको मां का दूध नहीं मिलता वह दूध कटु होता है उसी तरह जिसे मातृभाषा नहीं मिलता वह अपनी संस्कार-संस्कृति से कट जाता है।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मानविकी व भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि अपनी बात को सरलता से कह देना हमारी लोक की विशेषता है, जिसे हम मातृभाषा में गढ़ सकते हैं।
किसी भी बच्चे का समग्र विकास मातृभाषा के माध्यम से होती है। हम अपने विश्वविद्यालय में इस सुदृढ़ परंपरा को गढ़ने हेतु गतिमान हैं।बुद्ध परिसर के निदेशक व शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि हम 21 फरवरी 2000 से मातृभाषा दिवस मना रहे हैं, क्योंकि 'विचार' विषय वस्तु से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। इस वर्ष के दिवस का थीम है 'बहुभाषी शिक्षा और शिक्षा को बदलने की आवश्यकता'। आज विश्व में 4000 बोलियां लुप्त होने के कगार पर हैं। हम अपनी भाषा की हीनता बोध और दयनीयता से आगे नहीं निकल पा रहे हैं।
हम अंग्रेजी के वर्चस्व से उबर नहीं पा रहे हैं और उसकी हीनता बोध से ग्रसित हैं। हम अभी भी द्वन्द्व में हैं, मैं बार-बार कहता हूं कि भाषा के लिए विचार आवश्यक है,अनुभूति के स्वर को रोका नहीं जा सकता।कार्यक्रम के संयोजक हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों का स्वागत प्रस्तुत करते हुए कहा कि औद्योगिक क्रांति के बाद बहुत सारे भाषाओं का भी क्षरण हुआ है इसका मूल कारण संसाधनों का क्षरण है। भाषा के लुप्त होने के साथ ही संस्कृति भी मर जाती है, इसीलिए भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है। इस कड़ी में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एक सार्थक पहल है।
अपनी मातृभाषा को बचाने व बढ़ाने का हम सभी संकल्प लेते हैं । मातृभाषा में शिक्षा देने से समाज का गौरव स्थापित होगा। हम सभी को अंतरावलोकन व पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है।विश्वविद्यालय में दीन दयाल उपाध्याय परिसर के निदेशक प्रो. पवनेश कुमार ने धन्यवाद प्रस्तुत करते हुए कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास,उत्तर बिहार की स्थापना 24 मई 2007 को हुई और न्यास शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है। शिक्षा मातृभाषा में हो यह इसका ध्येय है।
उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों का धन्यवाद किया।समारोह का सफल संचालन अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. विमलेश कुमार सिंह ने किया।इस मौके पर विश्वविद्यालय में विभिन्न विभागों के आचार्य, सहायक आचार्य, शोधार्थी और छात्र'छात्राएं उपस्थित रहे।