अध्यात्मिक ज्ञानवर्धक पूजा आज डीजीटल की राह की ओर अग्रसर

अध्यात्मिक ज्ञानवर्धक पूजा आज डीजीटल की राह की ओर अग्रसर


सत्येन्द्र कुमार शर्मा

गरीब दर्शन।
अध्यात्मिक ज्ञानार्जन से ओतप्रोत बंसत के बासंतिक बेला में माँ सरस्वती की पूजा डीजीटल हो भटकाव की राह की ओर अग्रसर होता जा रहा है।
माँ सरस्वती के उपासक आज अपनी पूजा में डीजे साउंड सिस्टम को शामिल कर अध्यात्मिक ज्ञान से भटकाव की ओर तो नहीं अग्रसर होते जा रहे है।युवा आज डीजीटल इंडिया एवं मेक इंडिया के तर्ज पर पूजा अर्चना की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं कहने में तनिक भी हिचक नहीं है।हाल के शिक्षा व्यवस्था की कल्पना के धरा पर अवतरण के पूर्व से ही आज के युवा अध्यात्मिक ज्ञान से ओतप्रोत पूजा अर्चना से दूर भाग रहे हैं।
आज के युवा मंत्रोंचार, आरती गायन, संगीत, नाट्य प्रस्तुति की शुद्ध प्रस्तुति से कोसो दूर भाग रहे हैं।
ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा अर्चना का भारतीय संस्कृति सभ्यता में वसंत पंचमी  के दिन विशेष महत्व आदि काल से रहा है।आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने माँ सरस्वती का सृजन कर प्रकट करने की कथा कही जाती है।
भारत की ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ ऋतु वसंत का शुभारंभ बसंत पंचमी से ही शुरू होता है।  ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ शारदे व माँ सरस्वती की पूजा का विधि विधान बसंत पंचमी के दिन ही रहा है। माँ सरस्वती की पूजा अर्चना का कारण मुख्यत: ज्ञान की अधिष्ठात्री होने के नाते उनसे हमें माँ से अपने ज्ञान को देने की प्रार्थना की जाती है।माँ सरस्वती हमें ज्ञानी बनाएं विनती की जाती है। हम जिस क्षेत्र में भी काम काज कर रहे हैं उस क्षेत्र में हमें उच्चतम स्थान देने की कृपा करें।विभिन्न कलाओं में ज्ञान, विज्ञान, संगीत, नृत्य, नाट्य,शिक्षा, ग्रहस्थी जैसी तमाम कलाओं में हमें निपुणता प्रदान कर अंतिम उच्चाई प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है। ताकि हम धरा के नव निर्माण में अपनी अहम भूमिका अदा कर जीव जन्तुओं का कल्याण कर सकें।अच्च ज्ञान से सुन्दर, शिक्षित , सुसंस्कृत, समरस समाज की स्थापना किया जा सके जो ताकि हमारे द्वारा कृत आने वाले दिनों में उदाहरण बन सके।माँ सरस्वती की कृपा व आशिर्वाद से साहित्य संगीत सहित 16 कलाओं का विस्तार एवं संरक्षण किया जा सके।साथ ही माँ की कृपा से ज्ञान की पिपासा से संतुष्ट हो जग को संतुष्ट किया जा सके।
 विभिन्न रचनाकारों द्वारा कविता, नाटक, गीत, संगीत के माध्यम से अपना उदगार प्रकट किया जाता रहा है।
फिलवक्त कोरोना का संकट भी कार्यक्रम के आयोजन नहीं करने में मददगार बना हुआ है।
रही बात वसंत ऋतु का तो प्रकृति के सभी जीवों में शरद ऋतु काल के समाप्ति के बाद जीवन में नवसंचार होने लगता है।
धरा के वृक्ष अपने पुराने पत्तों का परित्याग कर नये पत्तियों से लदने लगते है तो धरा पर सर्वत्र नई पहचान सा बनने लगता है।
 हम वर्ष 2022 में वर्तमान दौर में मां शारदे की पूजा सिर्फ प्रदर्शन और डीजे तक सीमित हो कर रह गया है। मां शारदे की पूजा में अब न तो ज्ञानार्जन की चाह रह गई है न ही कलाओं के संरक्षण के प्रति कोई दायित्व। तीन चार दशक पहले की ही बात करें तो ऐसी स्थिति नहीं थी। शिक्षण संस्थानों से लेकर गांव घरों तक मां शारदे की पूजा अर्चना वेद मंत्रोच्चार , शंखध्वनि, हवन से की जाती थी। नाटकों का मंचन किया जाता था।नाटकों के मंचन से समाज को बेहतर पात्र के रूप में बेहतर कार्य करने की प्रेरणा का द्योतक बनाए जाने की प्रेरणा दिया जाता था जो आज डीजीटल एवं मेक इन में छुपता चला जा रहा है।