भारत के भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा विलूप्ति की ओर अग्रसर बचाव अहम

भारत के भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा विलूप्ति की ओर अग्रसर बचाव अहम

भारत के भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा विलूप्ति की ओर अग्रसर बचाव अहम

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,

प्रधान संपादक।
भारत की जनगणना 2023 के विषय में एक महत्वपूर्ण जानकारी यह मिली है कि संस्कृत भाषा आज विलूप्ति के कागार पर है।भारत की तमाम भाषाओं की जननी भाषा संस्कृत को बचाने का हमें प्रयास करना होगा तभी भाषा के विलूप्त होने से बचाया जा सकेगा।यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।वर्ष 2022 की भारतीय जनगणना उसके अंतिम चरण में है। जनगणना अधिकारी डेटा इकट्ठा करने जल्द ही आपके घर आएंगे। 


तब,आपकी मातृभाषा हिंदी गुजराती मराठी आदि जो भी हो उसे ध्यान में लिए बगैर, आप मातृभाषा के अतिरिक्त और कितनी भाषा जानते है? पूंछने पर इस बार आप सनातनी हिन्दू होने के नाते कृपा करके संस्कृत जानते हों तो बताना ना भूलें।


आपकी जानने वाली भाषाओं में से एक संस्कृत*अवश्य लिखवाएं। भले ही आप संस्कृत भाषा व्यवहार में रोज़ ना बोलते हों। इसके पीछे का तर्क यह है कि  हम हर दिन अपनी प्रार्थना, मंत्रोच्चार, श्लोक, संपूर्ण धार्मिक विधियां निश्चित रूप से संस्कृत भाषा में ही बोलते हैं। इस तरह देवों की भाषा संस्कृत का शुभ - अशुभ कार्यों में करते ही हैं।  तो इस बार आप संस्कृत भाषा भी जानते हो यह जनगणना करनेवाले अधिकारी के पत्रक में अवश्य लिखवाएं। देखिए ऐसा करने से भूलना नहीं होगा।


जनगणना के हिसाब से संस्कृत बोलने वालों की संख्या समग्र भारतवर्ष में दो-दो हजार ही बताई गई थी। उसके विपरीत अरबी और फारसी बोलने वालों की संख्या इससे अनेक अनेक गुणा अधिक पायी गई थी। इस तरह उनको भाषा के विकास हेतु फंड दिया जाता है। अगर इस बार संस्कृत बोलने-जानने वालों  की संख्या कम हुई तो संस्कृत भाषा को लुप्त भाषाओं की सूची में जोड़ दिया जाएगा। ऐसी संभावना प्रबल हो गई है। 


संस्कृत तो भारतवर्ष की सबसे प्राचीन, सुंदर, दिव्य, भाषा है, इस दैवीय भाषा संस्कृत को जीवित रखने की संपूर्ण जिम्मेदारी इस बार हम सबकी है।
अगर संस्कृत को हमारी छोटी सी लापरवाही के कारण जनगणना अधिकारी ने लुप्त भाषा में गिन लिया तो इस संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए सरकार की तरफ से निश्चित रूप से कोई फंड नहीं मिलेगा। और फिर हम संस्कृत को हमेशा के लिए खो देंगें। इसलिए इस बार जनगणना पत्रक में सतर्क रहकर संस्कृत का नाम अवश्य जोड़ें। 


आपके सम्मिलित प्रयासों के कारण ही संस्कृत को जीवंत रखा जा सकेगा। 
यह सर्वविदित है कि हम सनातनियों ने स्वयं अपना नुकसान कर लिया है, परंतु इस नुकसान को फायदे में जरुर बदला जा सकता है, अभी देर नहीं हुई है।  


कृपा करके जितना हो सके उतना आपके सभी परिजनों, मित्रों, स्नेही, व्यापारी संकुल, के बने अनेकानेक वाट्स एप ग्रुप में इस बात को अवश्य शेयर करें और लुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी हमारी अपनी संस्कृत भाषा को बचाने का प्रयास शुरू किया जाए तभी संस्कृत भाषा को विलूप्त होने से बचाया जा सकता है।