सम्राट अशोक एवं उनके आदर्शों को ठोकर मार चहुंमुखी शेर अशोक चक्र अपनाया जाना दुखद सच

सम्राट अशोक एवं उनके आदर्शों को ठोकर मार चहुंमुखी शेर अशोक चक्र अपनाया जाना दुखद सच

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,

प्रबंध संपादक

P9bihar news 
पत्रकार।

अशोक चक्र चहुंमुखी शेर अपनाया पर सम्राट अशोक एवं उनके आदर्शों को ठुकराया जाता रहा है।यह एक यक्ष प्रश्न कर मानस पटल पर छाया हुआ है।


"सम्राट अशोक" की "जन्म- जयंती" हमारे देश में "नहीं मनाई जाती है यह सर्व विदित है।
बहुत सोचने पर भी, "उत्तर" नहीं मिलता आखिर क्यों आप भी, इन "प्रश्नों" पर, "विचार" करें।हमारी संस्कृति का विन्स्टिकरण अभी भी जारी रहेगा।


आज भी जिस -"सम्राट" के नाम के साथ, -"संसार" भर के, "इतिहासकार"- “महान” शब्द लगाते हैं 
जिस -"सम्राट" का राज चिन्ह "अशोक चक्र"-" भारतीय", "अपने ध्वज" में लगाते है l


जिस -"सम्राट" का -"राज चिन्ह", "चारमुखी शेर" को, "भारतीय",- "राष्ट्रीय प्रतीक" मानकर,:- " सरकार" चलाते हैं l और "सत्यमेव जयते" को "अपनाया" है l
जिस देश में - "सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान", "सम्राट अशोक" के "नाम" पर, "अशोक चक्र" दिया जाता है l
जिस -"सम्राट" से -"पहले या बाद" में :- "कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ" जिसने  -"अखंड भारत" (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने, "बड़े भूभाग" पर:-"एक-छत्र राज" किया हो l


 सम्राट अशोक" के ही, समय में :- "२३ विश्वविद्यालयों" की "स्थापना" की गई l जिसमें :-  तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि "विश्वविद्यालय", "प्रमुख" थे l इन्हीं "विश्वविद्यालयों" में "विदेश" से "छात्र", "उच्च शिक्षा" पाने, :- "भारत आया करते थे" 
 जिस -"सम्राट" के "शासन काल" को -"विश्व" के "बुद्धिजीवी" और "इतिहासकार", "भारतीय इतिहास" का सबसे -"स्वर्णिम काल" मानते हैं 
 जिस -"सम्राट" के "शासन काल" में :- "भारत"-  "विश्व गुरु" था l "सोने की चिड़िया" था l जनता -"खुशहाल" और "भेदभाव-रहित" थी l


जिस सम्राट के शासन काल में, सबसे "प्रख्यात" "महामार्ग", :- "ग्रेड ट्रंक रोड" जैसे कई -"हाईवे" बने l २,००० किलोमीटर लंबी पूरी "सडक" पर, "दोनों ओर", "पेड़" लगाये गए l "सरायें" बनायीं गईं..l मानव तो मानव..,पशुओं के लिए भी, प्रथम बार "चिकित्सा घर" (हॉस्पिटल) खोले गए  l "पशुओं को मारना बंद" करा दिया गया l


 ऐसे -"महान सम्राट अशोक", जिनकी -"जयंती" उनके -"अपने देश भारत" में ही "क्यों नहीं मनायी जाती" है और न ही, कोई -"छुट्टी" घोषित की गई है।
दुख: है, कि :-जिन नागरिकों को ये -"जयंती", "मनानी" चाहिए वो अपना -"इतिहास" ही, "भुला" बैठे हैं l और , जो :- "जानते" हैं "वो":-  "ना जाने क्यों" "मनाना":- "नहीं चाहते" है।जबकि
जन्म वर्ष ३०२ ई पू
राजतिलक - २६८ ई पू
देहावसान - २३२ ई पू* 
पिताजी का नाम - बिन्दुसार गुप्त
माताजी का नाम - सुभद्राणी
"जो जीता, वही:- "चंद्रगुप्त" ना होकर "जो जीता", वही "सिकन्दर" कैसे हो गया


जबकि - "ये बात" सभी जानते हैं, कि "सिकन्दर" की सेना ने -"चन्द्रगुप्त मौर्य" के "प्रभाव" को देखते हुए ही, "लड़ने से मना कर दिया" था!बहुत ही ,"बुरी तरह" से "मनोबल टूट गया था"! और "वापस लौटना" पड़ा था ।
आइए  मिल कर - इस "ऐतिहासिक भूल" को, "सही करने" का, "हर संभव प्रयास" की शुरुआत करें।विद्वान अमिताभ पाण्डेय द्वारा उठाए प्रश्न अनुत्तरित सत्य है लेकिन हम हमारी सरकार ऐसे महान व्यक्ति एवं व्यक्तित्व को भी उच्च स्थान देने मेंं कोताही बरतने से गुरेज करती जा रही है।


लेकिन परन्तु मेंं सम्राट अशोक ने राजगद्दी का परित्याग कर एक आदर्श भी विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया जो आज उसके उल्टा किया जाना ही आदर्शों में सुमार हो चला है।