मौनी अमावस्या को भक्तों ने संगम पर आश्था की डुबकी लगाई
सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
मौनी अमावस्या के अवसर पर गंगा ,गंडक,सरयुग,सोन नदियों के संगम स्थल पर हजारों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।
हजारों श्रद्धालु इस अवसर पर मंगलवार की सुबह से ही आरा, छपरा, पटना, सासाराम, बक्सर, वैशाली, सीतामढ़ी, दरभंगा सहित कई जिलों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दोपहर तक लगातार पहुंचते रहे और संगम में आस्था की डुबकी लगाते रहे। हिन्दू पंचांग के मुताबिक माघ कृष्ण की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या शनिदेव और पितरों से संबंधित है। कहा जाता है कि जिस दिन सूर्य और चंद्रमा का मिलन एक ही राशि में हो उस दिन अमावस्या पड़ती है। विद्वानों के अनुसार मौनी अमावस्या को तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और संगम स्नान का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है।
इस दिन संगम में देव और पितरों का संगम होता है इसलिए इस संगम का विशेष महत्व है। सारण जिले के संगम की बात ही कुछ और है जिसकी चर्चा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकांड में 39 वें श्लोक में वर्णन किया है। राम भगति सुरसुरी तही जाई । मिली सुकीरती सरयू सोहाई। सानुज राम समर जस पावन। मिलेउ महानदी सोन सुहावना।। युग बीच भगति देव धुनि धारा। सोहित सहित सुमित विचारा।। इस मौके पर चिरांद विकास परिषद के सचिव सह गंगा समग्र उत्तर बिहार के सह संयोजक राम तिवारी द्वारा अयोध्या तथा सीतामढ़ी से आये संत तथा श्रद्धालुओं को लेकर संगम तट पर खरे और आस्था की डुबकी लगाई। इस अवसर पर राशेश्वर सिंह, सुमन साह,सुखल साह, रामबाबू राय, कुमार आनंद , उत्कर्ष रंजन,बहारन राय समेत दर्जनों लोग संगम स्थल पर सेवा कार्य में लगे रहे।
उधर पटना, सासाराम, बक्सर, वैशाली, सीतामढ़ी, दरभंगा सहित कई जिलों के बड़ी संख्या में श्रद्धालु दोपहर तक लगातार पहुंचते रहे और संगम में आस्था की डुबकी लगाते रहे।