अट्टहास हुडदंग धुड़खेल अबीर गुलाल का आदिकाल
सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
आदिकाल से अट्टहास हुड़दंग किलकारी मंत्रोच्चार से पापात्मा राक्षस का नाश होलिका दहन के उपरांत होने की मान्यता रही है जिसका अनुपालन हम सभी सनातन संस्कृति के लोग आज भी करते हैं।
आदिकाल में भगवान शंकर ने अपने क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म किया तो दूसरी ओर अग्नि से नहीं जलने का वरदान प्राप्त होलिका ने जब प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो होलिका जली और प्रह्लाद बच निकले की कथा आम बात है।
होली के हुड़दंग की शुरुआत होलिका दहन के बाद चैत्र मास के प्रथम दिन छोटे-छोटे बच्चे शुरू करते हैं और धीरे धीरे बृद्धजन भी शामिल हो जाते हैं। और सभी एक साथ होकर होलिका दहन स्थल पर एक साथ धुड़खेल कर घर वापस लौट आया करते हैं।
चालू मौसम में सुखी मिट्टी का शरीर पर लगाया जाना रोगरोधक बताया जाता है।तो दूसरी ओर मृतात्मा के जलाये गए स्थल पर मिट्टी डालने की विद्धा वैदिक काल से चली आ रही है।शरीर के पंचतत्व में मिलाने का एक जरिया है।
चुकी परिवार के ही पापात्मा को जलाया गया तो मिट्टी देना भी एक अहम कारक है।लेकिन पापात्मा के नाश होने के उपलक्ष्य में नये संवत्सर में होली गीतों के आदर्श के साथ खुशी में नाचते गाते सामुहिक प्रसार किया जाता है।
लेकिन आज एक बार फिर पापात्माओं का तेजी से विकास होता जा रहा है और हमारे धार्मिक अनुष्ठान में विघ्न डालने के लिए मांस मदिरा का सेवन धडल्ले से कर लोगों पर गोलियां बरसा उसके संग्रहित धन को लूट कर हमें दिग्भ्रमित करने में जुटे हुए हैं।
पापात्मा का नाश तय का परिचायक होलिका दहन है जिसे हम भूलते जा रहे हैं।