समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा धन यश स्वर्ग व पुत्र पौत्रादि प्रदान करने वाला होता है ऋषि पंचमी व्रत 

समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा धन यश स्वर्ग व पुत्र पौत्रादि प्रदान करने वाला होता है ऋषि पंचमी व्रत 

समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा धन यश स्वर्ग व पुत्र पौत्रादि प्रदान करने वाला होता है ऋषि पंचमी व्रत 

P9bihar news 


प्रमोद कुमार 
मोतिहारी,पू०च०।
ऋषि पंचमी व्रत का मान आज गुरुवार को होगा।रजस्वला के स्पर्श से प्राप्त दोष को दूर करने वाला ऋषि पंचमी व्रत भाद्रपद शुक्लपक्ष की मध्याह्न व्यापिनी पंचमी तिथि को करने का विधान है। इस दिन मध्याह्न काल में नदी,तालाब आदि निर्मल जलाशय पर जाकर अपामार्ग (चिचिड़ा) की एक सौ आठ दातुन से दन्तधावन कर शरीर में मिट्टी का लेपन कर जल में स्नान करना चाहिए व पंचगव्य का प्राशन कर अपामार्ग (चिचिड़ा) और कुशा से निर्मित

अरुन्धती सहित कश्यप,अत्रि,भरद्वाज,विश्वामित्र,गौतम,जमदग्नि,वशिष्ठ आदि सप्त ऋषियों की प्रतिमा को सर्वतोभद्र की वेदी पर स्थापित कर श्रद्धा एवं निष्ठा पूर्वक उन्हें पंचामृत से स्नान कराना चाहिए,फूलों एवं सुगंधित पदार्थों धूप,दीप इत्यादि अर्पण करने चाहिए तथा श्वेत वस्त्र,यज्ञोपवीत और विविध नैवेद्य व ऋतुफलों से विधिवत पूजन कर कथा श्रवण करना चाहिए।उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।

उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से रजस्वला के स्पर्श से प्राप्त दोष नष्ट हो जाते हैं। शरीर अथवा मन से किया गया समस्त पाप इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाते हैं। यह व्रत सब पापों को नष्ट करने वाला तथा धन,यश,स्वर्ग व पुत्र-पौत्रादि को देने वाला है। इस व्रत का अनुष्ठान सात वर्षों तक करने का विधान है।श्री पाण्डेय ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार पूर्व समय में वृत्रासुर को मारने से इन्द्र ब्रम्ह हत्या को प्राप्त हुए। उस हत्या से दुखी होकर वे अपनी शुद्धि के लिए ब्रह्मा जी के पास गए।

देवताओं के साथ ब्रम्हाजी एक क्षण ध्यान कर प्रसन्न मन से इन्द्र की शुद्धि कर दिए। उस समय ब्रह्मा जी ने ब्रम्ह हत्या के चार विभाग कर चार स्थानों में उसका प्रक्षेपण किया। प्रथम भाग को अग्नि की प्रथम ज्वाला में,द्वितीय को नदी के प्रथम जल में,तृतीय को पर्वत में और चतुर्थ भाग को स्त्रियों के रज में गिरा दिया। ब्रह्मा की आज्ञा है कि रजस्वला स्त्रियों को स्पर्श दोष से बचना चाहिए। इस अवस्था में स्त्रियों के लिए गृहकार्य में संलग्न हो ज्ञानावस्था या अज्ञानावस्था में बर्तनों का स्पर्श करना निषेध है ।

जो स्त्रियाँ निष्ठा पूर्वक इस व्रत को करतीं हैं वह रजस्वला के स्पर्श दोष से मुक्त होकर रूप,लावण्य व पुत्र-पौत्रादि से परिपूर्ण होती हैं तथा नाना प्रकार के ऐश्वर्य को भोगकर अंत में निष्पाप और सौभाग्यवती होकर अक्षयगति को प्राप्त होती है।