टीबी की 42 प्रतिशत पहचान एक्स-रे मशीन के द्वारा- डॉ बीके मिश्रा
टीबी की 42 प्रतिशत पहचान एक्स-रे मशीन के द्वारा- डॉ बीके मिश्रा
P9bihar news
प्रमोद कुमार
मुजफ्फरपुर।
आम तौर पर देखा जाता है कि टीबी रोगियों में लक्षण आने के बाद उनके रोग की पहचान होती है। ऐसे में उनमें रोग की संभावना प्रबल तो होती ही है, संक्रमण का प्रसार भी हो चुका होता है। इसलिए जरुरी है कि टीबी की पहचान उनके लक्षण आने से पहले ही हो जाए। यह आसान भी है क्योंकि 42 प्रतिशत टीबी मरीजों की पहचान एक्से रे मशीन के द्वारा ही संभव हो जाता है।
ये बातें टीबी के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ बीके मिश्रा ने वर्ल्ड वीजन इंडिया के कार्यालय में बुधवार को दो दिवसीय अल्ट्रा पोर्टेबल एक्सरे मशीन के प्रशिक्षण के दौरान कही। वहीं प्रशिक्षण के दौरान जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ सीके दास ने बताया कि सी 19 प्रोजेक्ट के तहत डब्ल्यू जे क्लिंटन फाउंडेशन से राज्य को आठ पोर्टेबल एक्सरे मशीन मिले थे।
इसमें दो अल्ट्रा पोर्टेबल एक्सरे मशीन मुजफ्फरपुर जिले को मिले हैं। इनके संचालन के लिए दो दिवसीय सी 19 प्रोजेक्ट के कम्युनिटी कोओर्डिनेटर, एक्सरे ऑपरेटर के साथ मुजफ्फरपुर के कांटी, गायघाट, डीटीसी, मोतीपुर और वर्ल्ड वीजन के दो एक्सरे ऑपरेटरों सहित दरभंगा के दो एक्सरे ऑपरेटर को प्रशिक्षित किया गया है।
लोगों को एक्सरे जांच के साथ ब्लड शूगर, बीपी और पूरा बॉडी मास इंडेक्स का भी जायजा लिया जाएगा। प्रशिक्षण लैब इंडिया हेल्थ केयर के टेक्निकल इंजीनियर नीतीश मिश्रा के द्वारा दिया गया।
ज्यादा से ज्यादा जांच हमारा लक्ष्य:
डॉ मिश्रा ने प्रशिक्षण के दौरान कहा कि टीबी उन्मूलन तभी संभव है जब ज्यादा से ज्यादा जांच होगी। कितने लोगों में बिना किसी लक्षण के भी टीबी होते हैं। ऐसे में एक्सरे जांच बहुत उपयोगी हो जाता है।सीडीओ डॉ सी के दास ने बताया कि अल्ट्रा पोर्टेबल एक्सरे मशीन आसानी से इस्तेमाल होने वाली एक्सरे मशीन ही है।
इसे आपरेटर बैगपैक की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं यह आर्टिफिशीयल इंटेलिजेंस की सहायता से जल्द रिजल्ट देने वाला होता है। इसमें रेडिएशन की आशंका अन्य एक्सरे मशीन की तुलना में काफी कम होता है, पर इसके संचालन के लिए भी लाइसेंस के प्रोसेस से गुजरना होता है।
वर्ल्ड वीजन के जिला समन्वयक दिनकर चतुर्वेदी ने बताया कि जल्द ही टीबी के संभावित मरीजों की खोज में ग्रामीण स्तर पर महीने में 20 से 22 दिन कैंप लगाकर टीबी के मरीजों की खोज की जाएगी। इसमें प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, एसटीएस और कम्युनिटी हेल्थ आफिसर भी सहयोग करेंगे। इससे वैसे लोगों को भी सहुलियत होगी जो अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं।
कभी कभी वैसे मरीज भी होते हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं होते वैसे मरीजों का एक्सरे कर पहचान करना आसान होगा। प्रशिक्षण के दौरान एसटीओ डॉ बीके मिश्रा, डब्ल्यू जे क्लिंटन फाउंडेशन की परिणीती दास, अमरजीत प्रभाकर, दीपक कुमार, सीडीओ डॉ सीके दास,
डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ कुमार गौरव, वर्ल्ड वीजन के स्टेट लीड मोहन सिंह, जिला समन्वयक दिनकर चतुर्वेदी, एसटीएस मनोज कुमार, मधु भारती, विवेक कुमार, एम एंड ई सुशांत झा सहित अन्य लोग उपस्थित थे।