चीनी की मीठास गायब होने के साथ कृषक- मजदूर के मूहँ के गायब रोटी वापस

चीनी की मीठास गायब होने के साथ कृषक- मजदूर के मूहँ के गायब रोटी वापस

चीनी की मीठास गायब होने के साथ कृषक- मजदूर के मूहँ के गायब रोटी वापस

P9bihar news 

सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
प्रधान संपदक।

मढ़ौरा चीनी मिल के चीनी की मिठास गायब होने के साथ ही मिल पोषित क्षेत्र के किसान मजदूर के मूहँ की रोटी भी गायब हो गई।ज्ञात हो मढ़ौरा चीनी मिल की स्थापना 1904 मेंं हुई थी।ये मिल अपने जमाने में करीब 20000 किसान परिवारों की रोजी-रोटी का मुख्य संचालक रहा है। साथ ही साथ करीब 2000 से अधिक लोग इस मील में काम करते थे। सारण व छपरा जिले के मढौरा में स्थित यह मिल 1904 में शुरु हुआ था जो की बिहार का सबसे पुराना मिल भी बताया जाता है।इस चीनी मिल की चीनी एशिया के बाजार तक जाने की भी बात कही जाती है।


 इस चीनी मिल से राज्य के सारण जिले के करीब 11 प्रखंड जिसमें  दरियापुर, परसा, बनियापुर, मकेर, अमनौर, तरैया, मढ़ौरा, मशरक, पानापुर, इसुआपुर आदि के किसान परिवार के आय का श्रोत रहा है और आय होने की उम्मीदें बंधी रहती थी।एन -केन- प्रकारेण तत्कालीन बिहार सरकार के रवैये की गलत नीतियों के खामियाजा 1998 में मील बंद हो गयी और ले दे के इस चीनी मिल का सत्यानाश कर दिया गया।स्थानीय कुछ किसान लोगों से पुछने पर पता चलाता है कि आज तक मिल पोषित क्षेत्र के किसानों के करीब 20 करोड़ रुपये राज्य सरकार पर उधार व बकाया है।


गौरतलब है कि नीतीश सरकार ने 2007 में चीनी मिल को चालू करने की कोशिश की गई।किसानों को गन्ने उगाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कहा गया किसानों अपने खेतों में गन्ने उगाए भी लेकिन मिल चालु किया गया। फलस्वरुप किसानों को अपने गन्नों को खेत ही जलाने के लिए मजबूर होना पड़ गया।

गौरतलब है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने इसपर ध्यान देने की बात कहीं लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया कहावत भी रहा गया। हुआ कुछ भी नहीं। सारन जिले के सभी विधायक और दोनों सांसद द्वारा भी चीनी मिल चालू कराने के लिए सदन से सड़क तक प्रयास किया जाता तो चीनी मिल को चालू करना सरकार की मजबूरी बन जाता लेकिन जनप्रतिनिधि इस महत्वपूर्ण योगदान से कन्नी काट रहे हैं।

फिलवक्त जनप्रतिनिधियों को चाहिए की पुरजोड़ तरीके से इस मुद्दे को संसद और विधानसभा में उठाए। चीनी मिल मिल के चालु रहने से क्षेत्र के किसान- मजदूर खुशहाल रहते यह बताने की जरुरत नहीं कि किसान-मजदूर के साथ चीनी कारोबार से जुड़े एक बड़ा तबका व्यापारियों का भी कितना आत्मनिर्भर रहता। काश अभी से भी यदि कोशिश शुरू किया जाय तो जिला व राज्य की जनता सार्थक प्रयास में आपके साथ रहेंगी।


काश कोरोना की मार के बाद फिर से सभी श्रमिकों को अपने राज्य से बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है उसे रोक लिया जाता।यह जिला व बिहार की जनता की पुकार हैं।इसी में जिला व राज्य का विकास छुपा है।