ऋग्वेद सहित कई ग्रंथों में सूर्य उपासना की चर्चा
ऋग्वेद सहित कई ग्रंथों में सूर्य उपासना की चर्चा
P9bihar news
सत्येन्द्र कुमार शर्मा,
भारत में सूर्य पूजा बेहद प्राचीन रही है। इसके प्रमाण ऋग्वेद में भी मिलते है। भारतीय संस्कृति में प्रख्यात इक्ष्वाकु वंश भी सूर्यपुजक ही थे ।इस संबंध में विद्वान रविशंकर मिश्रा ने बताया है कि भारत में द्वापर तक आते आते सूर्यपुजा का विशिष्ट विधान गौण हो चुका था। सूर्यपुजको में से ही एक शाखा मगध से जाकर सौर प्रदेश (शाक द्वीप) में सूर्यपूजा के विशिष्ट विधान को जिंदा रखा था।
भगवान कृष्ण, देवर्षि नारद आदि के प्रयासों के बाद साम्ब ने पुनः इस पूजा विधान को उन मग ब्राह्मणों से सीखा था।सांब ने अपनी कुष्ठ व्याधि सूर्य पूजा के विशिष्ट विधान से ही दूर की थी। मग फिर से मगध के बहत्तर गांवों में बसाए गए। उसी पूजा विधान से मुल्तान, कोणार्क,लोलार्क, औनगार्क
देवार्क,पुण्यार्क, बालार्क आदि द्वादश आदित्य सौरस्थलो पर सौर यज्ञ किए गए।
बिहार के इन दिव्य स्थलो पर सौर पर्व छठ पूजा साल दर साल आयोजित होती रही। धीरे धीरे जनमानस में इस पूजा के दिव्यता के प्रसार दिग्दिगंत में होती गई। आज भी यह छठ पूजा अपनी सात्विकता, सहकारिता, सहभागिता,पवित्रता, दिव्यता के कारण भगवान सूर्य आराधना के निमित्त अपनी अलग पहचान बन बिहार की अस्मिता की पर्याय बन चुकी है।
भगवान भास्कर हमारे लिए सदा कल्याणकारी बने रहें।